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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ स्तवन-संग्रह। तेरम गुमाथांन तणी कहै वात ॥ २६ ॥ घातीय चोकडी क्षय गई रहोय अघातीय एम, प्रकृति पिच्यासी जेहने जना कप्पड जेम॥दरसण ज्ञान वीरज सुख चारित पंच अनंत, केवलज्ञान प्रगट थयो विचरै श्रीभगवंत ॥ ३० ॥ देखे लोक अलोकनी छानी परगट वात, महिमावंत अढारै दोषण रहित विख्यात । आठ वरसे ऊणी कही इक पूरवकोडि, उत्कृष्ट तेरम गुणठाणे ए थिति जोड़ि ॥ ३१ ॥ कर सेलेसी करण निरूध्या मन वच काय, तेण अयोगी अंत समय सहु प्रकृति खपाय ॥ पांचे लघु अक्षर ऊचरता जेहनो मान, पंचम गति पांमें सिवपद चउदम गुणथान ॥३२॥ त्रीजे बारमें तेरमें मांहे न मरै कोय, पहिलो बीजो चोथो परभव साथे होय ॥ नारक देवनी गति माहे लाभ पहिला च्यार, धुरला पांच तिरी माहे मण ए सर्व विचार ॥ ३३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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