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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ३०५ ॥ इरियावही मिच्छामिदुक्कड संख्या-स्तवन ॥ || प्रभु प्रणमूं रे पास जिनेसर थम्भणो ॥ ए देशी ॥ पद पंकज रे प्रणमो वीर जिनंदना, त्रिकरए शुद्ध रे करि मुनिवर पय वंदरणा ॥ एमते रे पड़िकमी जिम इरियावहीं, श्री वीरनी रे वाणी तहत कर सरदही ॥ उल्लालो ॥ सरदही वांणी मन सुहाणी, चित्त आणी ते वली ॥ मिच्छामि दुक्कड़ तणी संख्या, कहिस जिम कहे केवली ॥ भू दग जल तिम वाउ, वरणसइ विगल पर‍ इंद्री तरणी ॥ करतां विराहण करम बंध्या, दुर ते करिवा भरणी ॥१॥ चाल ॥ पुडवि दगरे वाउ तेउ वरणस्सइ, पण थावर रे बादर सुहम दसे थई ॥ प्रत्येकजरे व सइ इग्यारह थया, बावोसे रे पज्जत्तग अपजत्तया ॥ उल्लालो | पजत अपज्जत्तग वखा राया, विगल तिय छह भाल ए ॥ जल-थल - खेचर भुयंग दुइ, पण इंद्रिय तिरि अडयाल ए ॥ तस्मादि साते नरक पुडवी, नारकी तिहां सात जे ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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