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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ स्तवन- संग्रह | मा० ॥ २१ ॥ नर तिरजंच असंखो उखै रे, सातमी नरकना तेम ॥ तिहांथी मरिनें मनुष्य हुवे नही रे अरिहंत भाख्यो एम ॥ मा० ॥ २२ ॥ वासुदेव बलदेव तथा वली रे, चक्रवर्त ने अरिहंत ॥ सरग नरगना आया ए हुवै रे, नर तिरथी न हुवंत ॥ मा० ॥ २३ ॥ चोविह देव थकी चवि ऊपजै रे, चक्रवर्ति बलदेव ॥ वासुदेव तीर्थंकर ए हुवै रे, वैमानिकथी वेव ॥ मा० ॥ २४ ॥ ॥ दाल ॥ ४ ॥ नाभि अने मरुदेवा || ए देशी ॥ हिव तिरयंच तणी गति गति कहिये - शेष, जीवभमें इस पर भव मांहे करम विशेष ॥ आउ संख्यातो जे नर तियंच विचार, ते सगला तिरयंचा मांहे लहे अवतार || २५ || जिस तिरयंचा मांहे वे नारक देव, ते कह्या पहली ति कारण न कहू हेव ॥ पंचेंद्री तियंच संख्यातै आऊखै जेह, ते मरी चिहुंगतिमां जावे इहां नही संदेह ॥ २६ ॥ थावर पांच तीने विकलेंद्री आठ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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