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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । २४५ सुथिर करो सुपसाय ॥२॥ पंचाचार धुरंधर युगबर पंचम गणधर बाण | पंचज्ञान विचार विराजित भाजित मद पंच वारण || पंचम काल तिमिरभरमांहे दीपक सम सोभंत । पंचम तप फल मूल प्रकाशक ध्यावो जिनसिद्धांत || ३ || पंच परम पुरुषोत्तम सेवा कारक जे नर-नार । वलि निरमल पंचमी तप धारक तेहभरणी सुविचार ॥ श्रीसिद्धायिका देवी हनिस आपो सुख अमंद । श्रीजिनलाभ सुरिंद पसाये कहे जिनचंद मुणिंद ४ ॥ ग्यारसकी स्तुति ॥ अरनाथ जिनेसर दीक्षा नमीजिन ज्ञान । श्रीमल्लिजन्म व्रत केवलज्ञान प्रधान ॥ इग्यारस मिगसर सुदि उत्तम अवधार। ए पंच कल्याणक समरीज जयकार || १ || इग्यारे अनुपम एक अधिक गुणधार | इग्यारे बारे प्रतिमा देशक धार । इग्यारे दुगणा दोय अधिक जिनराय । मन सुध सेव्यां सब संकट मिटजाय ॥ २ ॥ जियांवरस · For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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