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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ स्तुति-संग्रह सिद्धक्षेत्रसिहरे सहदेवता। भणे नंदिसूरि तुम पाय सेवता ॥४॥ इति श्रीशजय स्तुति ॥ ॥नेमिनाथजीकी स्तुति॥ ॥ गिरनार सिखरपर नेमनाथ सुपहाण । दीक्षा वर केवल ज्ञान अने निरवांण ॥ जसु तीन कल्याणक सुखकर सुरतरुकंद। तसु भवियण प्रणमो पाययुगलअरविंद ॥ २ ॥ अठावय चंपा पावापुर शुभ ठाण आइम बारम जिण चउवीसम जिणभाण ॥ अजितादिक वीसे पुहता सिवपुर वास। समेतशिखरपर प्रणमु अधिक उल्हास ॥ २॥ जिनवर मुख हूंती सुणि त्रिपदी ततकाल । गणधारक गूथ्या द्वादश अंग विशाल ॥ नयभंग पदारथ सत्त २ नव तत्त । भवि यणने तारे सायर जिम बोहित्थ ॥३॥ चक्केसरि अंबा पउमादेवी प्रत्यक्ष । श्रीसंघ मनोरथ पूरे वासुरवृक्ष ॥ ध्यावे सुख पावे श्रीजिनलाभ सूरीश। जिनवर सुप्रसादे आस फले सुजगीस ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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