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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृद्धनवकार । १५१ लोक इंदपद पामे सुंदरि ॥ एह मंत्र सासतो जपे अचिंत चिंतामणि एह, समरण पाप सबे टले रिद्धि सिद्धि नियगेह ॥ २ ॥ निय सिर ऊपर काण मज्झ चिंतवै कमल नर, कंचणमय अठदल सहित तिहां मांहे कनकवर ॥ तिहां बेठा अरिहंतदेव पउमासण फिटकमणि, सेयवत्थ पहरेवि पढम पय चिंते नियमणि ॥ निव्यारय चउ गइ गमण पामिय सासय सुक्ख, अरिहंत झाणे तुम लहो जिम अजरामर सुक्ख ॥ ३ ॥ पनर भेय तिहां सिद्ध बीय पद जे राहे, राते विद्रुमतो वन्ननिय सोहग साहे ॥ राती धोती पहर जपै सिद्धहिं पुत्रे दिसि, सयल लोय तिह नरहि होइ ततखिगसेवसि ॥ मूलमंत्र वशीकरण अवर सहू जगधंद, मणमूली श्रोषध करे बुद्धि होणजाचंध ॥ ४ ॥ दक्षिण दिसि पंखडी जपे नमो आयरियाणं, सोवनवनह सीस सहित उवए सहिनाणं || रिद्ध सिद्ध ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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