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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री गौतम स्वामिजी का रास । १४१ चउसठ इंद्रज मागे सेवा । चामर छत्र सिरोवरि सोहे, रूवहि जिनवरजग सहु मोहे ॥ ११ ॥ उपसम रसभर वर वरसंता; जोजन वाणि वखाण करता । जाणिव वर्द्धमान जिण पाया, सुर नर किन्नर आवइ राया ||१२|| कंत समोहिय जलहलकंता, गयण विमाणहि रणरणकंता । safa इन्दभूइ मन चिंते, सुर वे अम यज्ञ हुर्वते ॥ १३ ॥ तीर तरंडक जिम ते वहिता. समवसरण पुहता गहगहिता । तो अभिमाने गोयमजंपे, इस अवसर कोपें त कंपे ॥ १४ ॥ मूढा लोक अजाण्युं बोले, सुर जाणंता इम कांइ डोले । मो आगल कोइ जाण भणीजें, मेरु अवर किम उपमा दीजें ॥ १५ ॥ वस्तु ॥ वीर जिणवर वीर जिणवर नाण संपन्न पावापुर सुरमहिय, पत्त नाह संसारतारण, तिहिं देवइ निम्महिय, समवसरण बहु सुवख कारण, जिबर जग उज्जोय करें, तेजहि कर दिनकार 1 For Private And Personal Use Only "
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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