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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । [१२] थे । चिकित्सा करनेमें कोई कोर कसर न रखी गयी। बीकानेर, कलकत्ता, भवाली और जयपुर आदि स्थानोंमें सयाने वैद्यों और डाकरोंका इलाज हुआ । अन्तमें आप जयपुरमें वैद्यराज लच्छोरामजीके पास रह कर इलाज करने लगे । इनके इलाजसे कुछ लाभ भी हुआ । इन्हीं दिनोंमें इन्दौर में वैद्य सम्मेलन हुआ | आप सभा, सम्मेलन आदिके विशेष प्रेमी थे । अतः ऐसी अवस्थामें भी आप उक्त वैद्यजीके साथ इन्दौर - वैद्य सम्मेलन में सम्मिलित हुए। वहाँ जाने पर आपका स्वास्थ्य कुछ अधिक ख़राब हो गया और आप वहाँसे लच्छीरामजीके चेलेके साथ जयपुर लौट आये । अति खेद है कि इनका दुःख बढ़ता हो गया और वहीं शिवजी रामजी के बागमें वैसाख वदी ७ सम्बत् १६७७ वि० को २२ वर्षकी अवस्था में आपका शरीरान्त हुआ । आप इस समय संसार में नहीं हैं; परन्तु आपका कार्य सदा आपका सुचरित्र कहकर भविष्य में होनेवाले नवयुवकोंको सत्पथ दिखला रहा है । आप यदि कुछ दिन और जीवित रहते तो न जाने और कौन-कौन से कार्य करके जाति और देशको लाभ पहुंचाते । इतनी ही थोड़ी अवस्थामें आपने ऐसे-ऐसे काम कर दिखाये जिनको श्रवण कर यहाँ की जैन जातिमें कई सज्जन आश्चर्यचकित हो जाते हैं । सभा इत्यादि सङ्गठित करना, व्याख्यान देना दिलाना आदि कार्य आपने ही बीकानेरकी जैन समाजमें अच्छी तरहसे जारी किया । जैन जातिको ऐसे वीर युवकका अभिमान होना चाहिये और सदा इस वीरका कृतज्ञ होना चाहिये । निवेदक-संपादक. For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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