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________________ Jaina Literature and Philosophy Age – Samvat 1801. Author – Laksmivallabha Subject – Life of Vikramāditya. Begins - fol. 16 ॥ ६० ॥ पंडित श्रीहस्तिसागरगणिसद्गुरुभ्यो नमः प्रणमुं पासजिणंद पाय । ' कलि 'युगसुरुतरुकंद सैव करह नित जेहनी । पदमावति धराणंद ॥ १ ॥ मनि ध्याउं श्रीसारदा । कविजन केरी माय ॥ जासु प्रसादै पामि । सुवचन अमिय सहाय ॥ २ प्रणमु० वलि सदगुरु सदा । ज्ञाननेंणदातार । मूरष पंडित करे । ए मोटो ऊपगार । ३ । कहिसुं विक्रमरायनौ । चरित महागुण चंग । सुतां श्रुत ऊपजें : जहां नव रस बहुरंग । ४ etc. Ends - fol. 930 [669 जगजयवंतो विक्रमराजा ॥ जस त्रिभुवन वाजइ जसवाजा : ऊजेणी' पुरि छत्र विराजें: पंचदंड सिर परि छत्रछा जै ॥ १ ॥ साधुभगति गुरुले वासारें: साहसी जणनें पिण साधारें : संभलने परना दुष काटें : दरसण दालिद्रदुसमण दायें : ॥ २ ॥ जीरण जिनवरगृह ऊधारें : अधरम जनपद थकी निवारें : महिमा करिष परकायें ॥ जसु प्रतापरवि जगतविभासें ॥ १३ ॥ तासु सीस अतिमन छरंगे ॥ लषमीचल्लुभगणि सुषसंगें ॥ छट्ठे ist चवदमी ढाले || पभणी विक्रमजसजयमाले ॥ १४ ॥ ढाल ए भली जनसह जे कहि सी गुरुना मुषथी देसी लहिसी ॥ चतुर तण तनु चितरं जेसी: सुपट तणी तो सोभा लेसी श्रीविक्रमनोजस सांभलिसी : तसु मनच वंछितसगला फलिसी ॥ १५ ॥ कदे न होवें चिंता काई अहनिसि उत्सवरंग वधाई ॥ १६ ॥ इति श्रीविक्रमादित्यभूपालपं चंदंड चतुः पद्यां षष्टः षडः संपूर्ण समाप्तम् श्री ॥ छ ॥ सर्वढाल ७५ सर्वग्रंथ ३१६८ ॥ वारे: ऐ नम्. etc. ४६८ संवत १८०१ वर्षे माहवदि ६ शनी Reference-For extracts and additional MSS. see Jaina Gurjara Kavio Vol. I pages 113-115, Vol. II pages 217-20.
SR No.018104
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1987
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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