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________________ 7931 The Svetambara Works 189 for additional works see Jaina Gurjara Kavio (Vol. II, pp. 57-80) Subject - A story of Sanatkumāra, the 4th out of 12 Cakravartins who flowrished in India in the present Avasarpini age. For comparison the following works may be consulted :सनत्कुमाररास composed by पुण्यरत्न in V. S. 1637. , पसराज in V. S. 1650. Begins - fol. 10 ॥ ॐ॥ पंडितश्री १९ श्रीविनयहंसगणिचरणकमलेभ्यो नमः दूहा सोरठी प्रणमउं पारसनाथ वंछीतदायक लहर हर जोडी हाथ धवलधेग गोडी धणी । १ कहं छर्ड करी मनोहार चोथो चक्री गावां शरणागतसाधार सा निध करयो(जो )साहिबा २ गणधर प्रमी जेह सीद्धांतई श्रुतदेवता हु पिंण प्रणमुं तेह जिनमुषपंकज वासनी ३ कहं छठं मन निकोडि माणिकसागर मुझ गुरु जो पेथाइ जोड सा निध करब्यो सीष्यनी चक्रीना अधी(धि)कार उत्तराध्ययन भढारसे वृत थकी विस्तार तेहुं माणीस तिहां थकी ॥ etc. Ends -- fol. 19a 'अंचल 'गच्छे गिरुआ गच्छनायक श्रीगुंणरत्नसूरंदो रे तास पाट प्रभाकर सूरवर श्रीक्षमारत्न मुणंदो रे ५श्री. बुद्ध श्रीललितसागर तणा शीष्य प्रथम शुषकारी रे माणीकसागर मुनीवरु मुझ गुरु ज्ञानदातारी रे ते गुरुना शुपसायथी में चोथो चक्री गायो रे ऋषभदेवनें संघनी सांनीधे सरस संबंध सोहायो रे ७श्री. श्री' चक्रापुरीग्राम मां संवत् सतरसा(ड)बीसें(१७३७ )रे मागसिर विद पडवे भृगुवासरे सिद्धयोग शुजगोसें रे ८ श्री. एकावनने सातसें ग्रंथागरनुं मानो रे कोई प्रत्यक्षर गणी लषज्यों चित राषी थानो रे ९श्री. धन्यासीई ए भली कही एकत्रीसमी ढालो रे न्यां(शा)नसागर कहें साधु न गुण एणतां ममीय रसालो रे १०
SR No.018104
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1987
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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