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________________ Jaina Literature and Philosophy [782 जगनायक चउवीस जिण प्रणमुं तेहना पाय । नामनी रसं झीलतां पापमइल सहु जाय १ चवदइ सइ बावस (१४५२) तसु गणधर सहु गुणधाम ध्यान धरतां जेहनउ थाय इ वंछित काम २ After six verses we have :केवलिवचन जिके कह्यां ते सहु वात तहत्त श्रेणिक नृप ज्युं सलहियें समकित शुद्ध सहित्त ९ सुणज्यो श्रेण(णि)कनी कथा धिरज्युं समकित थाय १० ॥ etc. सपरी ढाले संयुगत मिश्री दू(दूध मिलाय ॥ Ends - fol. 346 श्रेणिकचरितमें विस्तर संबंध । सुणतां श्रवण सुहावें। मुख्य विलोवणे लीजियै भाषण गोरस मन ललचावै री। गुणवंततिके गुण गावैं ॥३॥ सतरइसैं उगणीसमैं( १७१९) वरसें । 'चंदेरी 'पुरि चावै । श्रीजिनभद्रसूरिश्वरशाषा । विधि षरतर 'वडदावै री। गु० ४। सुभकरणी जिनचंद यतीश्वर गणधर गोत्र गजा वै। राजै ‘सूरित 'सहर चौमासे । वलि जस पडह वजावै री ॥ गु० ५। पाठक साधुकीरति साधुसुंदर विमलकीरति वरतावै । विमलचंदस(रा?)मविजय हरषजस ॥ श्रीध्रमशील प्रभावै री ॥ गु०६॥ वय लघुमै उगणी समै० वरसें । कीधी जोडि कहावै । भायौ सरस वचनको इणमै । सो सदगुरु सुपसावै री ॥७॥ गु०॥ श्रोता वकता श्रीसंघ सहुना । विघनपरा मिटि जावें । इहभव परभव सहु सुखसाता। पांमै धरमप्रभावै री। गुण० ८॥ इति श्रीशुद्धसम्यत्तोपरि श्रीश्रेणिक महाराजस्य चतुःपदिका सर्वढाल ३२ संपूर्णा ॥ श्रेयोस्तुतराम् सर्वगाथा ७३१॥ श्री 'वीकानेर'मध्ये उपाध्याय श्री श्री धर्मवर्द्धनगणि तत् शिष्य वाचनाचार्य श्री श्री कीर्तिसुंदरगणी तत् शिष्य शांतिसोमजी मुनि ॥ पं० सभाचंदमुनिलिषिता ॥ श्री।। श्री॥ Reference - For extracts and additional MSS. see Jaina Gurjara Καυίο.
SR No.018104
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1987
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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