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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक पद ऊर्ध्वपटल, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि उरध तेरे सब पटल कहै; अंति: ध्यान मांहि आनिये, गाथा ४. ५०३. पे नाम. द्रव्यगुणपर्याय पद, पू. २३० आ-२३१अ, संपूर्ण. " जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि दर्बन विषै दर्व को विचार अति इसमें पर्याय का विचार, गाथा ५. ५०४. पे. नाम. देवनरकायु पद, पृ. २३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तेतीस बाईस सत्तरै दश सात; अंति: ध्यान मांहि आनियै, गाथा-४. ५०५. पे. नाम. नारकीकर्मप्रकृतिबंध पद, पृ. २३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: औदरिक दोय आहारीक दोय नरक; अंति: सब नाशै शिवथानी है, गाथा-४. ५०६. पे. नाम. नामकर्मप्रकृतिभेद पद, पृ. २३१अ - २३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तन बंधन संघात वरन रस जात; अंति: तीर्थंकर जीवंदौ अघनाश है, गाथा-४. ५०७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जाकौ जानौ संतति न कहि सकै; अंति: सदा ग्यान रूप यह आत्मा, गाथा-४. ५०८. पे नाम. चक्रीसकोवरनन सवैचा, पृ. २३१आ, संपूर्ण. " चक्रवर्तीसमृद्धि पद, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि हाथी चौरासी लाख धोरी भी अति दो घरी मैं कर्म वनजार हैं, गाथा-४. ५०९. पे. नाम. ग्यानचोवीसी छंद, पृ. २३१आ, संपूर्ण. ज्ञानचौवीसी छंद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भान भो भावना ग्यान लौं; अंति: सौखकौं लटकै अठकौं जारि है, सवैया- १. ५१०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २३१-२३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चाहत है सुख पै न गाहत है; अंति: द्यानत० की चतुराई वतिया, गाथा-३. ५११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कौ गुरु सार वरै शिव कौन, अंति: द्यानत० सदा जपि लीजै, गाथा-४. ५१२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २३२अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि कीन बुरातम कीन हरे तजिये, अति द्यानत० सदा जपि लीजे, गाथा ४. ५१३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३२अ संपूर्ण. जै.. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: माय होय बालक को मारे तो अंतिः विसस करे धेरै का की आसजी, गाथा-४. ५१४. पे नाम औपदेशिक पद, प्र. २३२२-२३२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-श्रोतावक्ता, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि वकता हे ग्यानी श्रोता अंतिः धकेली तो दोउ क्रूप पर है, गाथा-४. ५१५. पे नाम. अभयदान पद, पृ. २३२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: औषध आहार ग्यान दया वढे; अंति: राजा मांहि राजपट लीया है, गाथा-४. ५१६. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३२आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: निरधन दरव पाय साह देखि; अंति: वल जान वक राम गावै है, गाथा-४. ५१७. पे नाम औपदेशिक पद, पू. २३२-२३३अ. संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि नियत घोटी साज नाज महिगा; अति प्रानी तो सुख पावै सबहीं, गाथा ४. " For Private and Personal Use Only
SR No.018084
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2019
Total Pages624
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size19 MB
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