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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि गजकुंभे बेसी आवे; अति मोहन कहै जयकार, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन थुई, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि वर्धमान जिनवर परम अंतिः सिद्ध मंगलकारिणी, गाथा ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तुति पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं अंति (-). (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११६३९१ (+) गुणवर्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४- १२(१ से १२) = २. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी पूजाचरि०., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X११, १७x४५). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि सं., पद्य वि. १४८४, आदि (-) अति (-) (पू.वि. सर्ग-२ श्लोक-२०० अपूर्ण से २९७ अपूर्ण तक है.) १९६३९२. पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, जैवे. (२६.५x११, ३x२४) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है, लोक-३ अपूर्ण से है.) १९६३९७. सुभाषितादि श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-९ (१ से ९)= २, कुल पे. ६, जैवे. (२५.५x११, १६x४६-५९). १. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पू. १०अ ११अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मता केन दृष्टा न सृष्टा, श्लोक-७४, (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. २४ प्रमादविकार लक्षण, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभ में द्वाविंशति प्रमाद का उल्लेख है किन्तु २४ के नाम दिये गये हैं. " सं. गद्य, आदिः उच्चैर्निष्ठवति१ सानुराग अति पश्चातापस्मरणम् २४ (वि. यह कृति मूल श्लोकानुक्रम ७४ से ७५ के बीच में अलग से है.) ३. पे. नाम. २४ असती लक्षण नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. असतीलक्षण विचार, सं., गद्य, आदि द्वारदेशायिनी १ पश्चादवलोकन, अंतिः पुरुषान्वेषणं करोति. ४. पे. नाम. सत्पुरुष ३२ लक्षण नाम, पू. ११अ ११आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण नाम-पुरुष, सं., गद्य, आदि कुलीन१ शीलवान् २ शीचवान् अति क्षमा परिभावकश्चेति. ५. पे. नाम. रामरावण सैन्य परिमाण, पृ. ११आ, संपूर्ण. रामरावणसैन्य परिमाण, सं., गद्य, आदि रावणदलं पंचाशत्योजनस्तु अति: सहस्र अक्षौहिणी रामस्य. ६. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , श्लोक संग्रह पु,ि प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. श्लोक ८६ अपूर्ण तक है., वि. वस्तुतः मूलश्लोकक्रम ७५ से ८६ है. इस बीच दूसरी कृतियाँ संलग्न है.) ११६४०१. (+) भरतक्षेत्र परिमाणादि वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६-३५ (१ से ३५ ) = १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६×११.५, ९४२५). ', भरत क्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति (-) (पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. भरतक्षेत्र के जीवों की संख्या से कला अर्द्धकला का वर्णन अपूर्ण तक है., वि. सारिणीयुक्त.) १९६४०२ (७) प्रश्नपद्धति संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x११, ५x२७-३२). प्रश्नपद्धति संग्रह, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश अति (-) (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक-४९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only
SR No.018083
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2018
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size17 MB
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