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________________ [ 15 'मारु गुर्जर' नाम से इस भाषा को बताया है जिसमें 19वीं शताब्दी से पूर्व की लगभग 5-6 शताब्दियों की इस भू-भाग की बोलचाल किंवा साहित्यिक भाषा का समावेश हो गया है। स्तम्भ 7-विषय संकेत: यद्यपि मोटे रूप में विभागानुसार विषय संकेत हो जाता है तो भी इस स्तम्भ में ग्रन्थ की वस्तु का अति संक्षिप्ततम सारांश परिचय रूप में दिया है जो पाठकों के लिए लाभप्रद सिद्ध होगा। इस प्रकार उपरोक्त सात स्तम्भों में ग्रन्थ सम्बन्धी जानकारी के संकेतों का स्पष्टीकरण के बाद अब उन स्तम्भों का विवेचन किया जाता हैं जो मुख्यतः प्रस्तुत प्रति से ही सम्बन्धित हैं। स्तम्भ 8-पन्नों की संख्या : इस स्तम्भ में प्रति के कुल पन्नों की शुद्ध संख्या जो है वह लिख दी गई है जिसको द्विगुणित करने से पृष्ठों की संख्या प्रा जाती है। यथा संभव पन्नों को गिनकर सही संख्या लिखी गई है और बीच में जो पन्ने कम हैं अथवा अतिरिक्त हैं उन क्रमांकों की टिप्पणी दे दी गई है । अधूरी या अपूर्ण तथा कहीं-कहीं त्रुटक प्रति के भी पन्नों के क्रमांङ्क जो उपलब्ध है अथवा कम है बीगतवार लिख दिये हैं। जहां एक से अधिक प्रतियों की प्रविष्टि एक साथ की गई है वहां प्रत्येक प्रति के पन्नों की संख्या अलग-अलग लिखी गई है जिनका क्रम विभागीय क्रमांकानुसार है, ऐसा समझ लेना चाहिये । स्तम्भ 8 A-नाप : इस स्तम्भ में प्रति के बारे में चार प्रकार की सूचना दी गई है । पहिली संख्या प्रति की लम्बाई और दूसरी संख्या प्रति की चौड़ाई दर्शाती है जो दोनों सेन्टीमीटरों में है। तीसरी संख्या प्रतिपृष्ठ (न कि प्रति पन्ने में) कितनी पंक्तियां है, यह बताती है और चौथी संख्या प्रति पंक्ति औसतन कितने प्रक्षर हैं यह दिखाती है । चारों संख्याओं को इसी क्रम से लिखा है और उन्हें अलग-2 करने हेतु सुविधा के लिये बीच में 'x' निशान लगा दिया है। जहां ग्रन्थ केवल यन्त्र तालिका स्वरूप ही है वहां लकीरों व अक्षरों की संख्या नहीं दी है। तथा जहां प्रति पंचपाठी (अर्थात् बीच में मूल ग्रंथ व उसके चारों ओर वृत्ति आदि लिखी हुई) या टब्बार्थ सहित है वहा पंक्तियों व अक्षरों की संख्या मूल की ही दी है । जहां एक से अधिक प्रतियों की प्रविष्टि एक माथ में की गई है वहाँ केवल प्रतियों की लम्बाई चौडाई ही दी है और वे भी जब प्रति प्रति भिन्न है तो लम्बाई व चौड़ाई दोनों की लघुतम व दीर्घतम दो-दो संख्यायें लिख दी गई है । दृष्टांतः-भाग 3 (आ) भक्तामर स्तोत्र 5 प्रतियों की प्रविष्टि के सामने 24 से 26 x 11 से 12 लिखने का तात्पर्य यह है कि इन पांचों प्रतियों की लम्बाई भिन्न-भिन्न हैं जो नीचे में 24 और ऊचे में 26 सेन्टीमीटर है और इसी प्रकार चौड़ाई भी भिन्न-2 है जो नीचे में 11 और ऊंचे में 12 से -टीमीटर है। चूकि सेन्टीमीटर भी कोई बहुत विस्तार वाली दूरी नहीं है अतः हमने मीलीमीटरों में जाना श्रेयस्कर नहीं समझा है-आधे से अधिक को पूरा सेन्टीमीटर गिन लिया है और आधे से कम को छोड़ दिया है। स्तम्भ 9-परिमाण : इस स्तम्भ में भी सूचना दो दृष्टिकोणों में दी गई है ग्रन्थ के स्कन्ध (खण्ड) पर्व, सर्ग, अध्याय, प्रकाश, परिच्छेद, अधिकार, प्रकरण, उद्देशक, ढाल, पद, छन्द, गाथा, श्लोक आदि की संख्या द्वारा उसका परिमाण बताया गया है। जहाँ उपलब्ध है वहाँ ग्रंथान [अन्य के कुल प्रक्षरों की संख्या को 32 (प्राचीन अनुष्टम् छंद का अक्षर परिमाण) से भाग देने पर आने वाला . भजनफल ग्रंथान कहलाता है] संख्या भी लिख दी है। परन्तु कभी-कभी यह ग्रंथान संख्या वास्तविकता से
SR No.018081
Book TitleBadmer Aur Mumbai Hastlikhit Granth Suchipatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSeva Mandir Ravti Jodhpur
PublisherSeva Mandir Ravti Jodhpur
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size13 MB
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