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________________ [ 13 . इसके अतिरिक्त कई प्रतियां विशेषतः स्तवन मंत्रादि एक दो पन्नों की अति लघु रचनायें होती है। तथा प्रत्येक भण्डार में कई सारे पन्ने स्फुट और त्रुटक भी होते है और कई गुटके भी होते हैं जिनमें बहुत सी छोटी-मोटी कृतियों का संकलन होता है । हमने इन सब लघु ग्रन्थों, स्फुट व त्रुटक पन्नों और गुटकों की पूरी छानबीन करके जो मुख्य या संकलनीय रचनायें प्रतीत हुई उनकी तो अलग-अलग प्रविष्टियां कर दी है; तथा बाकी बचे हुए इन अमहत्वपूर्ण व अनुल्लेखनीय छघु ग्रन्थों व पन्नों को मिलाकर एक ही क्रमांक पर विभागानुसार अन्त में प्रविष्टि कर दी है । कदाचित् विषय की अधिक गहराई में जाने वाले के लिए इन लघुकृतियों व स्फुट त्रुटक व अपूर्ण पन्नों की उपयोगिता हो सकती है। इसी प्रकार गुटकों को भी क्रमांक देकर अलग से भी प्रविष्टि कर दी है । इस तरह हमन भण्डार की समस्त प्रतियों, पूर्ण या अपूर्ण, गुटकों तथा स्फुट पन्नों व त्रुटक या लघु ग्रन्थों प्रादि सबको सूची पत्र में ले लिया है-बाहिर कुछ भी नहीं छोड़ा है। स्तम्भ-2-स्त्रोत परिचयाङ्कः चूकि यह सूचीपत्र केटेलोगस केटेलोगोरम पद्धति से बनाया गया है अतः इस स्तम्भ की आवश्यकता है ताकि ग्रंथ उपलब्धि आसानी से की जा सके। भण्डारों के सूचक अक्षरों का स्पष्टीकरण सुगम्य है जो उपर दे चुके हैं। स्तम्भ-3-ग्रन्थ का नाम: जैन आगम भाग को छोड़कर प्रत्येक विभाग के ग्रन्थों को अकारादिक्रम से लिखा गया है और इसलिये सूचीपत्र में उल्लेखित ग्रन्थों को पुनः परिशिष्ट में अकारादिक्रम से सजाने की विशेष आवश्यकता नहीं समझी गई है। जैन आगम ग्रन्थों को जैन मान्यतानुसार अंगसूत्र और अगबाह्य सूत्र (पांच उप विभागों में विभाजित) का जो क्रम नियत है तदनुसार लिखा गया है और यह विषयसूची से स्पष्ट हो जाता है तथा सामान्य पाठकों की सुविधा के लिये मुख्य विषय सूची के बाद जैन आगमों की एक सूची अकारादिक्रम से भी बनाकर लगादी गई है। लेकिन विभागीकरण की तरह नामकरण में भी एकरूपता नहीं हो सकती क्योंकि भिन्न-भिन्न प्रक्षर संयोजना से ग्रन्थनाम का प्रथम अक्षर भी भिन्न हो जाता है। उदाहरण स्वरूप "गौड़ी पार्श्व स्तोत्र" और "चितामणि पाश्वं स्तोत्र" को हमने क्रमशः 'पार्श्व (गौड़ी) स्तोत्र' और पार्श्व (चितामणि) स्तोत्र ऐसा नाम देकर दोनों स्तोत्रों को अक्षर 'पा' के नीचे संकलित करना अभीष्ट समझा है । कई बार एक ग्रन्थ विद्वत् जगत् में एक से अधिक नामों से प्रचलित होता है जैसे 'दर्शन-सत्तरी' को 'सम्यक्त्व सत्तरी' भी कहते हैं और विचार विशिका 'चतुर्विशतिदण्डक' 'चौवीसदण्डक' या केवल 'दण्डक' के नाम से भी प्रसिद्ध है । उपरोक्त कठिनाइयों से उत्पन्न समस्याओं के निराकरण हेतु पाठकों से और विशेषतया शोधार्थी पाठकों से हमारा निवेदन है कि अभिलषित ग्रंथ की प्रविष्टि के बारे में निराश होने के पहले संभावनीय विविध विकल्पों के अनुसार सूचीपत्र को अच्छी प्रकार से ढूढें तथा लेखक परिशिष्ट को भी मदद लें। इस वास्ते पूरी विषय सूची को हृदयंगम करके तथा प्रविष्टि के सभी स्तम्भों को देखना व इस 'प्राक्कथन संकेत' को भी ध्यान पूर्वक पढ़ना आवश्यक है । सूची पत्रों में विभागीकरण, विषय सूची, अकारादिक्रमणिका इत्यादि सुविधा के हेतु हैं परन्तु प्रमादवश उसे ही एक मात्र आधार या बहाना बना लेंगे तो विद्यमान होते हुवे भी ग्रंथ हाथ नहीं लगेगा। स्तम्भ 3A: इसमें ग्रन्थ का नाम रोमन लिपि में दे दिया है ताकि देवनागरी लिपि न जानने वालों को कुछ सुविधा हो जाय । तथा उनकी सहलियत के लिए ही सूची पत्र में सर्वत्र भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप ही प्रयोग में लिया गया है। स्तम्भ 4-ग्रन्थ कर्तादि का नाम : इस स्तम्भ में ग्रन्थकार का नाम व उसके गुरु या पिता का नाम और उसकी आम्नाय भी दे दी गई है ताकि पूरा नाम परिचय हो जावे । यदि ग्रन्थ वृति आदि सहित होने से दो अथवा दो से अधिक लेखकों की कृति
SR No.018081
Book TitleBadmer Aur Mumbai Hastlikhit Granth Suchipatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSeva Mandir Ravti Jodhpur
PublisherSeva Mandir Ravti Jodhpur
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size13 MB
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