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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १४५ १०२१६८. भगवतीसूत्र-शतक ११ उद्देशक ११ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:महा०ट०, सुदर्सट., जैदे., (२६४११, ७X४७-५०). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सदर्शनश्रेष्ठी अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समयेणं; अंति: चेव सेवं भंते भंतेत्ति. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शन श्रेष्ठी अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेकालने विर्षे; अंति: तुम्हे का ते सत्य छे. १०२१६९ (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४३५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-४ अपूर्ण से सूत्र-६ गाथा-३४ तक है.) १०२१७० (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०१,प्र.वि. हुंडी:राजसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २०७९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१-३५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, संपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ० चउथा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-२४ का टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) १०२१७१. चौविसजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. नटीपद्रनगर, प्रले. ग. दानप्रमोद (गुरु ग. कुलहंस); गुपि. ग. कुलहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४३). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, रत्नहंसगणिशिष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गी देउ सुक्खं सुअंगी, श्लोक-२७, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) १०२१७२. (+#) समयक्त्वपच्चीसी सह अवचरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, त., (२६४११, ६x४२). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ अपूर्ण से है.) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भवतु अन्यत्सुगम, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १०२१७३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भग०सू०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ६४३६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देशो-१ अपूर्ण पाठ-"नेरइयाणं भंते केवलिकालस्स आणमंति वा" से "चाउरंतं संसारकंतारं वितीवति" तक है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२१७४. १२ अनुप्रेक्षा, २२ परिषह व ४ ध्यानादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५३-४८(१ से ४८)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४११.५, १६४३९-४४). १२ अनुप्रेक्षादि विचार संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) १०२१७५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १५८७, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १६४-२६(१ से २६)=१३८, पठ. ग. रंगसोम (गुरु ग. हर्षसोम पंडित); गुपि. ग. हर्षसोम पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र, ज्ञाताधर्मकथासू०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंतिः सुयखंधो समत्तो, अध्ययन-१९,ग्रं. ५५००, (पृ.वि. अध्ययन-१ पाठ "रयणगिरिपब्भारो धरणतलंसि" से है.) १०२१७६ (#) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-१(२)=१२, प्र.वि. हुंडी:गोतिम, गो०पृच्छा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ से १७ तक नहीं है व गाथा-३१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only
SR No.018070
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2018
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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