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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६१४६. (+) सुकनावली भाषा, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. गोलनगर, प्रले. मु. नवलसोम; गुभा. मु. शिवलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, ११-१३४२८-३४). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: थारे इंद्री उपर तील छइं. ९६१५१ (+) सिद्धांतचंद्रिका सह सदानंदी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. हुंडी:सदानंदी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३१-३३). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हस संधि अपूर्ण तक है., वि. मात्र मूल सूत्र ही है.) ९६१५२. (+) सुयगडांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ अध्ययन १, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुगडंग०., संशोधित., दे., (२४४११, ६-७४३८-४४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "एवंविप्पडिवेदंति० किरियाइवा अकिरियाइ" पाठ तक है.) ९६१५४. देवसिपडिकमणो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२४.५४११.५, १२४३१-४१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: तीन नवकार गुणी थापना थापी; अंति: (-), (पू.वि. "सुयदेवइभगवइ आराधवा निमित्तं" पाठ तक है.) ९६१५६. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १५५-६३(१ से २५,२७ से २८,३० से ३७,३९,४९,५८ से ६६,६८,७०,८१,९० से ९१,१२५ से १३५,१४९)=९२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३-५४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२९ अपूर्ण से सूत्र-११३५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६१५७. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४१-१०८(१ से ८९,१०४,११३ से १३०)=३३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पट०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७-१५४४२-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन चरित्र सूत्र-१५७ अपूर्ण से समाचारी व्याख्यान सूत्र-६४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९६१५८. (+) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २००, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४९-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-), __ ग्रं. ५२१६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम प्रशस्ति भाग श्लोक-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) ९६१५९ (+) सारस्वत व्याकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३६-५(१ से ५)=१३१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १५४५०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., हसानां संज्ञा पाठ "स्वरहीनं० इतएतिगच्छतिइत" से "वृषभेण पंगुः खंजः पुमात् ऊढः" पाठ तक For Private and Personal Use Only
SR No.018069
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2018
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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