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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, ___ अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)हिवे विघ्न टालवाने; अंति: तुज प्रति कह ५९७९० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२८-१(१)+२(१९७,२७८)=३२९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४११.५, ४४२७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अचलगछिनिमत्ता सुदीपि; अंति: एहवौ तीर्थंकरे कह्यो, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इति उदायन ऋषि संबंध, कथा-४, (पूर्ण, पू.वि. "जणाचेव जंगीयत्थयगुरुण" पाठ से है.) ५९७९१. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र कृष्ण, ३०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७६-१४(१ से १३,१७)=२६२, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. चिमनराम विरामण चतुर्वेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५२३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६४१२, ११४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "तेणं कालेणं तेणं समएणं समणो भगवं महावीरे" से है) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, ग्रं. ४१०९, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से "त्वाकाष्टग्रहणार्थवनेजगाम" तक एवं "दीर्घाणितपोसिचकार एकदा च विश्वभूति" पाठ से "तिर्विहारं कुर्व्वन मथुरायां समागतः" पाठ तक नहीं है.) ५९७९२. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६२, ले.स्थल. रहणगाम, प्रले. मु. भीवराज ऋषि (गुरु मु. छीत्रमल); गुपि.मु. छीत्रमल (गुरु मु. गुमानचंद ऋषि); मु. गुमानचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ७४४३). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२, ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: वली नमस्कार हुवउ; अंति: वार्ता संपूर्ण थई, ग्रं. ९३००. ५९७९३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान-कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३६-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे अवसर्पिणी; अति: ए भगवंतइ उपदिसिउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सारदा देवी, (२)लौकिक पर्व दीवाली; अंति: आज्ञानो आराधक जाणवो. ५९७९४. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १२५-२८(१ से ७,३९ से ५७,१०१ से १०२)=९७,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ६-१७४३०-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ से ऋषभदत्त द्वारा देवानंदा को स्वप्नफल कहे जाने के प्रसंग तक, सिद्धार्थ राजा द्वारा १४ स्वप्नों के अर्थ सुनकर हर्षित होने के प्रसंग अपूर्ण से नालंदा नगर में चातुर्मास के प्रसंग अपूर्ण तक तथा स्थविरावली के बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिम वाक्य के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दुक्कडम देवौ. For Private and Personal Use Only
SR No.018061
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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