SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 449
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र - टवार्थ * मा.गु., गद्य, आदि: जयक० विजय कषायादिक; अंति: अनुज्ञा नाम जाणवा ६२६२७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९८ - १३५ (१ से २८,५१ से १५७)=६३, प्र. वि. कुछ पत्रों में पत्रांक नहीं हैं, पदच्छेद सूचक लकीरें, जै. (२५१३, ३-१२४३१-४३). " उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं है.. "" अध्ययन - २, गाथा २८ अपूर्ण से अध्ययन- ५, गाथा - ३० तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययन सूत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६२६२८. (+#) चंद्रकेवलि चरित्र अंतर्गत गाथाकाव्य श्लोक सह टबार्थ + व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. ६६, प्र. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१३.५, ५x२६-३०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचंद्रकेवलि चरित्र - गाथाकाव्य श्लोक, संबद्ध, प्रा. सं., पद्य, आदि: जं चंदणेण तइआतइअं अंतिः यः श्रीवीरभद्रं दीस, लोक-३६३ (वि. १८५७ आश्विन शुक्ल, १, रविवार) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र - गाथाकाव्य श्लोक का टबार्थ + व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वदेव, अंति: जीव परम मंगलिक दिओ (वि. १८५७ आश्विन शुक्ल, ११. गुरुवार) ६२६२९. (+#) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ६६, ले. स्थल नागोर, प्रले. श्रीनाथ जोषी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४४१२.५, ६- ९४४४). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः पण्णत्ता तिबेमि, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा, अंतिः त्ति० इसो कां. ६२६३० (+) श्रीपाल चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८१-१८ (१,३४ से ३६, ५० से ६३) = ६३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१३, ८X३१). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि (-) अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के " पत्र नहीं हैं., गाथा-२९ अपूर्ण से १२८० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ६२६३१. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५X१२.५, ७X३७-४०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, 'छठाण निमितत्थकाय' पाठ तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'चित्तासुत्तीपूवाविसलपभासा' पाठ तक का रचार्थं लिखा है) ६२६३२. (+) प्रतिक्रमण सूत्र, स्तुति, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६०, कुल पे ७७, प्र. वि. क्षमाकल्याण गणि के द्वारा लिखित प्रत के ऊपर से लिखा गया., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५x१३, १३x३० ). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंतिः समुन्न निमित्तं. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ३. पे, नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ संपूर्ण हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउकसायपडिमलुरण, अंतिः पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. For Private and Personal Use Only
SR No.018061
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy