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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६१००५. (+) बृहत्संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-१६(३,६ से ९,११ से १२,१५ से १६,१९ से २१,२९,३५,४०,४४)+२(२२,२७)=४८,प्र.वि. यंत्र सहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ३-६४३०-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच के पाठांश नहीं है व गाथा-३०२ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीने अरित अरि; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१००६. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२-५(४१,४६ से ४७,४९ से ५०)=४७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १६x४८-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से अध्ययन-३२ गाथा-४५ अपूर्ण तक, अध्ययन-३२ गाथा-७४ अपूर्ण से अध्ययन-३५ गाथा-११ अपूर्ण, अध्ययन-३६ गाथा-६८ अपूर्ण से गाथा-१०४ व गाथा-१८१ अपूर्ण से गाथा-२६५ अपूर्ण तक है.) ६१००७. (#) पंचसंग्रह सह मलयगिरीया टीका-उद्वर्तनापवर्तना से सप्ततिका संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७, प्र.वि. प्रत्येक प्रकरण के अलग-अलग क्रम में पत्रांक तथा अलग-अलग प्रतिलेखकों द्वारा लिखे गये हैं. अतः सभी पत्रों को क्रमशः गिना गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२-१६४३७-४६). पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अपवर्तनापवर्तना प्रकरण गाथा-४ से सप्ततिका संग्रह अपूर्ण तक लिखा है.) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६१००८. (-) भैरवपद्मावती कल्प, पद्मावती आराधना, मंत्रयंत्रादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५७, माघ शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. १३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. किशनकरण मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, १५४४५). १.पे. नाम. पद्मावतीकल्प, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. __ भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: कमठोपसर्गदलन; अंति: भैरवपद्मावतीकल्पः, परिच्छेद-१०, श्लोक-४००, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम. पद्मावती कल्प, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: श्रीमद्गीर्वाणेत्या; अंति: मंत्र प्रांतरंजिका, अध्याय-६, श्लोक-७२, (वि. जप-अनुष्ठान विधि सहित.) ३. पे. नाम. भैरवपद्मावती कल्प व्याख्यारूप अनुष्ठानविधि, पृ. १७आ-२४अ, संपूर्ण. भैरवपद्मावती कल्प-टीका का संक्षेपरूप पद्मावती अनुष्ठान विधि, सं., गद्य, आदि: तत्रादौ स्नात्वा; अंति: लक्षजापात्सारस्वतम्. ४. पे. नाम. पद्मावतिदेवी चतुष्पदिका, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिनशासन अवधारि करेवि; अंति: भवण जिणप्पहसूरि, गाथा-३७. ५. पे. नाम. रक्तपद्मावती कल्प, पृ. २५आ, संपूर्ण. पद्मावती कल्प-रक्त, सं., गद्य, आदि: ओं ह्रीं क्लीं पद्म; अंति: पंचातयो देयोः. ६. पे. नाम. पद्मावती मंत्र, पृ. २५आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं एह सक्ती हस; अंति: स्वाहा जाप सहस्र१६. ७. पे. नाम. पद्मावतीपूजन विधि, पृ. २५आ-२८आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी पूजन कल्प, सं., गद्य, आदि: अत्र पद्मावती पूजने; अंति: योगिन्यस्ता नमाम्यहम. ८. पे. नाम. पद्मावती स्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only
SR No.018061
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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