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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९६ www.kobatirth.org मु. नवल, पुहिं, पद्य, आदि: काल सकल जग जीत्या वे; अंतिः नवल प्रेम रस पीता, गाथा- ४. १३८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४७अ ४७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वागुना जा र तेरे घट; अंति: अब चल देख बाहार, गाथा- ३. १३९. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४७आ, संपूर्ण पुहिं. पद्म, आदि: मेडे मन भाव दे; अंतिः ओर न काजसु वाव दे, गाथा-२. " १४०. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ४७-४८अ संपूर्ण मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जोडी थारी कौन जुडेलो; अंति: भव भव दीज्यो दीदार, गाथा-३. १४१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४८अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: इण नेणंदा एही सुभव; अंति: नवल० झडाव जड्या हो, गाथा-३. १४२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४८ अ- ४८आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मीलीया जी मोहै सुगर, अंतिः करूं गणधर परमानंद, गाथा- ४. १४३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४८आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: जिनगुण गाणा वे एक पल, अंति: गुरूदेवीवचन निवाणा, गाथा - २. १४४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मनमां ज्यां सोही मंज, अंति: गुरु कहत यह मान भला, गाथा - २. " १४५. पे. नाम. प्रभु उपकार पद, पृ. ४९अ, संपूर्ण. मु. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: कौन उतारे पार प्रभु; अंति: धर्मपाल० भूलै उपगार, गाथा- ३. १४६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४९ अ - ४९आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि मे धारी आदि महिमा, अंति: हम जाचक तुम दानी, गाथा-४. १४७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कांई चालेगो रे मनडा, अंति: साहिब पावे सिवधान, गाथा- ३. १४८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५०अ संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: गावो रे गुण गावो रे; अंति: जाण भूधर भरम पिछाण, गाथा-३. १४९. पे नाम. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, पृ. ५०-५० आ. संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. गुणसागर, पुहिं, पद्य, आदि: मुजरी मान न लीजै हो, अंतिः गुणनिध० दरसण दीजै हो, गाथा-३. " १५०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब म्हारी बीतडी सुणि; अंति: नीजर मो पै कीजीये, गाथा- ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५० आ-५१अ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: मनवा कीन भात सुरजे, अंति: भोरा जुंइणमै निरझी, गाथा-२. " १५२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५९अ, संपूर्ण, साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेडी वोर निहार हो; अंति: चंदरूप० उतार हो सांई, गाथा-२. १५३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५१ अ - ५१आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: अर मन तु रंग के रस अंतिः याने सिवसुख लीनो रे, गाथा-३. " औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदिः यह जग थिर नही तुम; अंति: भूधर० गुरू की आन, गाथा - ३. १५४. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. ५१ आ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १५५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: नैनन मै आन वान कोन; अंति: जनम सफल आनंद भरी हो, गाथा-३. १५६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद - चिंतामणि, पृ. ५१-५२अ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि मन भायी री मन भावो अंतिः सरणे राज तुमारे आयी, गाथा- ३. " १५७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ५२अ संपूर्ण,
SR No.018060
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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