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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दै; अंति: मिच्छामिदुक्कड मोयजी, ढाल-२२. ५७९२५. (+#) नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-३५(१ से २०,२२ से २४,३२ से ४३)=९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ५४३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५५ अपूर्ण से १६२ अपूर्ण तक, श्लोक-१८४ अपूर्ण से २३२ अपूर्ण तक व २५१ से २५९ तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७९३६. सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी टीका-पूर्वार्द्ध, अपूर्ण, वि. १८६७, मध्यम, पृ. ११६-३९(१ से ३९) ७७, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. मु. मलुकचंद ऋषि; अन्य. नयनसुख; गुणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५,१३४५३). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्वार्द्ध में पाठ- "शितिसूवचंयत् सर्वस्यस्यात् अद्भीत्यात्वे आभ्यां" से है.) ५७९५४. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. देवीदीन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, ७४२७). अनेकार्थध्वनिमंजरी-श्लोकपदाधिकार, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: ये समयो युद्धसत्वयोः, श्लोक-२१०. ५७९७१. (+#) आरंभसिद्धि सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-९(१ से ७,१३ से १४)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४०). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., द्वितीय विमर्श, श्लोक-२३ से तृतीय विमर्श, श्लोक-७ तक व चतुर्थ विमर्श से अंतिम भाग तक व चतुर्थ विमर्श, गमद्वार, श्लोक-७२ तक है., वि. यंत्र सहित.) आरंभसिद्धि-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ५७९८०. (+) वाग्भट्टालंकार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तण, प्रले. कान्हा श्रीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२-१४४४०-४५). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५. वाग्भटालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रियमिति अन्यस्य; अंति: अव्ययीभावसमासः. ५७९८२. (+#) नारचंद्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, ७-१४४४०-४४). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हत जिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "लग्नथकी गणलेहर इतिसंज्ञा" पाठ तक लिखा है.) ५७९८७. (#) नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४०). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक- ३५ अपूर्ण से १९८ अपूर्ण तक है.) ५८००२. (+#) द्रव्यतीर्थ, भावतीर्थ व नयादि आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १४-१५४३८-४६). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भाव आचार्य तीर्थंकर समान प्रसंग से ब्राह्मीलिपि नमस्कार प्रसंग निरूपण अपूर्ण तक लिखा है.) ५८००३. (+#) हैमीनाममाला बीजक, अपूर्ण, वि. १६६१, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १४-६(१ से २,७ से १०)=८, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, २४४५४). For Private and Personal Use Only
SR No.018060
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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