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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणजिणमग्गण; अंति: लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिधाय परतेजो, (२)नमस्कार करीने; अंति: श्रीतपागच्छाधीराजे. ५७१८०. बृहत्कल्पसूत्र, प्रायश्चित्तविधि व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ४२, कुल पे. ३, ले.स्थल. नौतमपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २५००, दे., (२६४११, ५४३२-३७). १.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४०आ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: णो० न कल्पे निसाधु; अंति: थिवर कल्पीनी मर्जादा. २. पे. नाम. प्रायश्चित्तविधि सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: वृत्ति मध्ये छे, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधि का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीवीने भिन्न भिन्न; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "छ लघुच्छेद छ गुरुच्छेद" तक के पाठ का टबार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तयंत्र, पृ. ४२अ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५७१८१. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. मेघकुमारकथा अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काले चउथे; अंति: (-). ५७१८२. कल्पसूत्र- वाचना १ से ८, अपूर्ण, वि. १७८७, फाल्गुन शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४९-१(१)=४८, प्रले. ग. छत्रसौभाग्य (गुरु पं. तिलकसौभाग्य); गुपि.पं. तिलकसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. महावीरजिन के गर्भावतरण प्रसंग से है.) ५७१८५. (#) जीतकल्प व पंचाशकादि सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४६-१४(१ से ७,१२ से १५,३७,३९,४४)=३२, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक ३८ के बाद अंकित नहीं हैं अतः काल्पनिक पत्रांक दीये हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४११.५, १५४४५-५०). १.पे. नाम. जीतकल्पसूत्र सह वृत्ति, पृ. ८अ-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदिः (-); अंति: सुपरिच्छिय गुणम्मि, गाथा-१०५, (पू.वि. गाथा ४ से है. बीच के पाठांश नहीं हैं.)। जीतकल्पसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७४, आदि: (-); अंति: (१)शुध्यतः सिध्यतश्चेति, (२)तावत् कलहंसी चखेलतु. २.पे. नाम. पंचाशक सह टीका, पृ. ३८अ-४३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ से हैं.) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. लघुश्राद्धजीतकल्पसूत्र, पृ. ४५अ, संपूर्ण. श्राद्धलघुजीतकल्प, आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं नमिउं; अंति: रइया सिरितिलयसूरीहिं, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only
SR No.018060
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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