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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१४ १६९ ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्ण१ दर्शना; अंति: वीर्यगुणनें रोके. ५६८५९. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७१-१७(४ से १५,२१ से २२,५०,५६ से ५७)=५४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. प्रत जीर्ण होने के कारण कुछ पत्रांक अस्पष्ट एवं अनुपलब्ध हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से गाथा- २०१ तक है तथा बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)। कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ते समय जीणइं देवीणं; अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८६०. प्रद्युम्नचरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८-३(५१ से ५३)=६५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११, १३४३८). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३३, आदि: श्रीमंतं सन्मतिं; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-७ गाथा-६१ अपूर्ण से सर्ग-७, गाथा-१४९ अपूर्ण तक एवं सर्ग-८, गाथा-३७७ अपूर्ण के पश्चात के पाठ नहीं है.) ५६८६१. (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८५-३४(१ से ५,७ से १०,१५ से १६,२२ से २३,२५ से ३२,३९ से ४१,४६ से ५४,७६)=५१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३५-४०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८६२. (+) समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १३४४८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक समवाय, सूत्र- १५८, तीर्थंकर परिवार अपूर्ण तक है.) ५६८६३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१-९४(१ से ९२,१०७ से १०८)-४७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५-१३४२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १२७ अपूर्ण से पाठ- "आएनइ तीरे वे आव" तक एवं गाथा- १२२ से पुरुष के ७२ एवं स्त्रियों के ६४ कलाओं के वर्णन तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५६८६४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५, प्रले. पांडेदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.७००, जैदे., (२४.५४११, ६x४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंति: अनइत्रना संबंधना. ५६८६५. (+) सम्यक्त्वकौमुदी चरित्र, संपूर्ण, वि. १६२३, आश्विन शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४४४). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: स्माद्धर्मो विधीयतां, पद-४४४, ग्रं. १६७५. For Private and Personal Use Only
SR No.018060
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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