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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१३ ४६१ प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: वीरःसर्वसुरासुरेंद्र; अंति: रम्यागिर: पातुवः, श्लोक-२३२. ५५४४८. (#) पद संग्रह, सज्झाय, सवैया व निर्वाणकांड-भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४३१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: सुनौ जिया यह सतगुरु; अंति: निवडो दुंद दसातै, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: मोही जीव भमत मतै; अंति: विलास निकास हृदय सैं, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जीव तु अनादही भल; अंति: नीच रैलवा जीवत, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___पुहि., पद्य, आदि: सुन जियारे खोवै छै; अंति: मानो सतगुरुदी बातडि, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. टोडरमल, पुहिं., पद्य, आदि: जीया तोसों केतक बार; अंति: डोटर० तिहुं लोक नही, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: कैसा ध्यान धर्या है; अंति: जगतराम० नमो ऊचरा है, गाथा-४. ७. पे. नाम. निर्वाणकांड भाषा, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतरागिवंदौ सदा भाव; अंति: निर्वाणकांड गुणमाल, गाथा-२२. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जादवराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तेरी बुधि कौन; अंति: पडौगे नर्क नगरी रे, गाथा-२. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी जुगति जानी नही; अंति: सुख चाहो भवोदधि तिरो, गाथा-२. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिआ जिनराज विनारे; अंति: भवसागर तिरणां रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन वीनती, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. साधारणजिन वीनति, मु. भूदरदास, पुहि., पद्य, आदि: अहो जगत गुरुदेव सुनी; अंति: भूदर० सुन लिजो भगवान, गाथा-१२. १२. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे मुनिवर देखे बनमै; अंति: नित प्रत ध्यान जतनमै, गाथा-५. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहै पसु दीन सुनौ जग्; अंति: जगदिस कछु आइ है, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदिः जिनराज ना विसारो मत; अंति: भुदर० दगा है यारो, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने ४ गाथा को १ही गीना है, आगेगाथा क्रमशः) १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज उरमै धारौ वसु; अंति: अव सिव महल सिदारो, गाथा-१. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: मैरा चसमों दा प्यारा; अंति: निर्वाण पद लहा है, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only
SR No.018059
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2012
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size12 MB
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