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________________ 528 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Jaipur-Collection) धरतउ हाट एकनइ थडइ जई बइठउ । इसइ प्रस्तावि श्रावक पांच सात श्रीजिनपत्तिसूरिना गुण वर्णवता सांभली पूछा- तुम्हें केहना गुण कहउ छउ ! तेहे श्रीजिनपत्ति सूरिना गुण कह्या । पछइ ते श्रावक संघाति पोसालाई श्रावी गुरु 'लक्षण ईर्यातमिति प्रमुख प्रतउ रात्रि पोसालनई खुराइ सुतउ सूतउ चींतवई । ए दिवस मांहि तां प्रमादनउं कारणु न दीठउ । रात्रिनउ .....जतां जयणाई हींडइ छई । सिज्भाय नमन करई छ । परिण वार-बार महातमा ढूंढी माहि जाई तिहां काइ कारण संभावी | पछइ पाछिली रात्रिनी पोरसिहं ऊठी ढूंढी माहि जइ राख वेलू तेल देखी। थोड़ी-थोड़ी वस्तु गांठ बांधी सूतउ । प्रभाति पोसाल बाहिरी जइ जउ जोइ, तउ वेलू राख तेल दीठा विस्मय ऊपनइ । भोलउ चेलउ एक पूछिउ कहउ तुम्हारइ एसिइ काजि प्रावइ ! चेलइ सर्ववात कही। वेलू वर्तवान काजि, राख जीव जईला नइ काजि नई लिलीउ तेल लेपनइ तु । ते प्रणालीयं आज ढूंढा मांहि रहिउं छइ । इम संदेह भागउ । पछी प्रगट हुई, सिद्धान्त तत्त्व सांभली श्री सम्यक्व मूल पजिवजी मरोटि पाछउ प्राविउ । पछइ जान करी श्रावड प्रभनइ साथि लेई श्रीपत्तिसूरि समीपे श्रावी महामहोत्सव पूर्वक पुत्र नई दीक्षा दिवरावी । ते ऋमिई ऋमिदं भरतां गुणतां चारित्र पालितां श्री जिनेश्वरसूरि हूया | पछs नेमिचन्द्र भंडारीइं श्रीजिनपत्तिसूरि "श्रीजिनवल्लभसूरिना कीघा सूक्ष्मविचार, कर्मग्रन्थ, पिण्डविशुद्धि प्रमुख धरणां ग्रन्थ सांभली, ते गुरुना वचन सर्व सिद्धान्तन मिलतां जाणि आस्था ऊपनी । पछ सम्यक्त्व नई दृढतानई काजि परोपकार भरणी एकसउ साठि गाथा रूप ग्रन्थ की | हिव ते गाथा लोकनइ समझाविवा भरणी, विजयमान गुरु श्रीजिनचन्द्रसूरिन प्रादेसि वणारिसि मेरुसु दर गरिणइ वार्ता बालावबोध संक्षेपि | तिहां घुरिली गाथाई च्यारई बोल सार भूत छइ ते कहीइ - अरिहं देवो० | Closing Colophon : Jain Education International X X X एवं भंडारिय० । इम इसी परिहं भंडारी श्री नेमिचन्द्रिइ केवलीइ एकसउ साठि गाथा रची-नवी कीधी । हिव जे विधिमार्ग खरी स्वामीनी भाषी विधि तेहनइ विराई, जे रत सावधान भव्य जीव छई, ते ए पढउ अर्थ - जाउ । जिम सम्यग् ए अर्थ श्राराधतां भगतां गुणतां शिवपद पामउ, अनंत सुख लहउ | छ ।। १६१ ।। इति षष्टिशतप्रकरण - बालावबोधः समाप्तः ॥ छः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018049
Book TitleSanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM Vinaysagar, Jamunalal Baldwa
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1984
Total Pages648
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationCatalogue
File Size19 MB
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