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________________ 112 ] Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (B.O. Jaipur; 4. Mahārāja's Public Library Collection) अर्थ-इहाँ ग्रन्थकर्ता प्राचार्य श्रीसकलकोतिनामा है। सो इस सुभाषितार्णवनांम ग्रन्थ की प्रादिविर्ष मंगलकै निमित्त इष्टदेव प्रातमां तीर्थंकर चन्द्रप्रभनांमा जिनेंद्र कुं नमस्कार करि पर सुभाषितार्णव नाम ग्रन्थको करुं हूं। CLOSING : ॥ दोहा ।। तिनका जो संबंध मैं, चौधरि पन्नालाल । श्रावककुल विख्यात है, पांड्या खंडिलवाल ।।१५।। ।। शार्दूलयुग्म ॥ गुप्यारामजि चौधरी गुणिवरी जिनके सगे पुत्र हैं, जो छाजूलालजि पापल्या अरु तथा दासी नथूलालजो। डेडा का वसती सदासुखजि जो जो कासलीवाल है, इन्की संगति पायकै गुणकलासंयुक्त विद्या पढ़ी ॥१६।। व्याकृत्यादि समस्तशास्त्र जिनकै बोधावली कीजहै, पन्नालाल जु चौधरी जयपुरै अभ्यास विद्या करै। छाजूलालजि आदि तो समय यां पंचत्व कू प्राप्त है, पश्चात् धर्मरुची भई जिनकृपा भाई दुलीचंद कै।।१७।। इन्की सर्वसहाय से वचनिका वाकी रही हो कि ज्यो, सारी संस्कृतग्रन्थको अरु तथा ज्यो प्राकृती मैं रही। केई ग्रंथनिकी वणी वचनिका भाषामयी देशकी, पन्नालालजु चौधरी विरचि जो कारक दुलीचंदजो ॥ ॥ दोहा॥ पन्नालाल सु चोधरी, रची वचनिका सार । सुभाषितार्णव की या, निजमति के अनुसार ।। इति श्रीपीठिका समग्रंः॥ OPENING : 127. प्रारणाभरणम् ॥श्रीगणेशाय नमः ॥ विद्वांसो वसुधातले परवचःश्लाघासु वाचंयमा भूपालाः कमलाविलासमदिरोन्मीलन्मदापूरिणताः। आस्ये धास्यति कस्य लास्यमधुना धन्यस्य कामालस स्वर्वामाघरमाधुरी मधुरयन् वाचां विलासो मम ॥१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018048
Book TitleSanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages378
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationCatalogue
File Size12 MB
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