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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir || अर्हम नमः ।। ॐ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार आदि श्रमण संहति का भी मैं ऋण स्वीकृति पूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्रायः हुआ. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रहीत करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी आधुनिक साधनों का इस ज्ञानमंदिर में सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने जिस समर्पित भाव से किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. गणि श्री नयपद्मसागरजी आदि मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सभी की भी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहास सर्जक है. श्री मनोजभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री शैलेषभाई महेता, श्री नवीनभाई जैन, श्री आशिषभाई शाह आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकरों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर विभाग का कार्य सम्हालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री गिरीशभाई एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का खंड ८ प्रकाशित होने जा रहा हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर का विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होगा. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागर सरि For Private And Personal Use Only
SR No.018031
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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