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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir परिशिष्टः कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या यद्यपि भविष्य में कृति की विस्तृत सूचनाओं के साथ इस तरह के परिशिष्टों के स्वतंत्र खंड २.१ आदि प्रकाशित करने का आयोजन है, तथापि विद्वानों की मांग तथा उपयोगिता को दृष्टि में रखकर, कैलासश्रुतसागर- जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय खंड से सूची के अंत में कृतिपरिवार - अनुसार हस्तप्रतों की अनुक्रम संख्या दर्शानेवाले दो परिशिष्ट प्रकाशित किए जा रहे हैं. परिशिष्ट-१ में संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं के इस सूचीपत्र की प्रतों में उपलब्ध कृतिपरिवार के अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. परिवार की मुख्य कृति की भाषा के अनुसार पूरा परिवार इस परिशिष्ट में समाविष्ट कर लिया गया है. मुख्यकृति के पुत्र-पौत्र-प्रपौत्रादि स्तर की देशी भाषाओं की कृतियों को भी यहीं सम्मिलित कर लिया गया है. ध्यान रहे कि ऐसी कृतियों को परिशिष्ट-२ में पुनः सम्मिलित नहीं किया गया है. इसी तरह एकाधिक भाषावाली कृतियों में संस्कृत आदि व देशी दोनों भाषाएँ हों, वैसी कृतियाँ मात्र इस परिशिष्ट में सम्मिलित की गई हैं. परिशिष्ट-२ में मात्र देशी भाषाओं वाली मूल कृतिपरिवार के अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. इनके संस्कृत आदि भाषा के पुत्र-पौत्रादि का समावेश भी यहीं कर लिया गया है. इन परिशिष्टों में कृति की -- कृति का मुख्य नाम, कर्त्तानाम, भाषा, अध्याय-ढाल आदि संख्या, गाथा/श्लोक संख्या, ग्रंथाग्र, रचना संवत, गद्य-पद्य आदि कृति प्रकार, धर्मसंकेत व मुख्य आदिवाक्य -- इतनी सूचनाओं का समावेश किया गया है. १. इन परिशिष्टों में मूल आदि स्व-स्व स्तर के अकारादि क्रम से कृति परिवार को क्रमशः प्रथम स्तर पर मूल, मूल के ऊपर रचित उसकी टीकादि संतति स्वरूप कृतियों को द्वितीय स्तर पर तृतीय स्तर पर पौत्र, चतुर्थ स्तर पर प्रपौत्र, इत्यादि प्रकार से सदस्यों को समाविष्ट करती वंशवृक्ष शैली में - प्रकाशित किया जा रहा है. २. प्रथम स्तर के बाद द्वितीय, तृतीय आदि प्रत्येक स्तर का सूचक अंक (२), (३) इत्यादि कृति नाम के प्रारम्भ में ही दे दिया गया है. यथा कल्पसूत्र (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका (३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टबार्थ ३. कृतियाँ परिवारानुसार दी गई हैं. यथा- लोगस्स, शक्रस्तव, चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमण, पच्चक्खाण आदि स्वतन्त्र तत्-तत् अक्षर पर न मिलकर आवश्यकसूत्र के परिवार में स्व-स्व स्तर पर मिलेंगे. ४. कृतियाँ निम्न तरह के अकारादि क्रम में दी गई हैं. अ. सभी स्तरों पर कृतियाँ - कृतिनाम, कर्त्तानाम व आदिवाक्य इस तरह त्रिस्तरीय अकारादि क्रम से दी गई हैं. यानि, प्रथम अकारादिक्रम से समान नामवाली कृतियाँ एक साथ दी गई हैं. उनमें भी समान कर्ता नामवाली कृतियाँ एक साथ कर्त्तानाम के अकारादि अनुक्रम से दी गई है और उन समान कर्ता नामवाली कृतियों को भी आदिवाक्य के अकारादिक्रम से रखा गया है. आ. मूल कृति के परिवार की पुत्र-पौत्रादि कृतियाँ स्व-स्व द्वितीय, तृतीय आदि स्तरों पर स्व-स्व परिवार के साथ अपने भाष्य, चूर्णि, टीका आदि कृति स्वरूपों के अनुसार दी गई हैं. यह क्रम कृति स्वरूप के अकारादि क्रम का न होकर, कृति स्वरूप की महत्ता के अनुसार निम्न क्रम से रखा गया है. i. कृति स्वरूप क्रम : मूल, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, वृत्ति, व्याख्या, वार्तिक, अवचूर्णि, अवचूरि, टिप्पण, बालावबोध, ४५४ For Private And Personal Use Only
SR No.018030
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2008
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
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