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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१६३१. (+) भगवतीसूत्र सह विशेषवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ७७४, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. यह प्रति वि. १५५९ की प्रति पर से लिखी गयी है, उसी की १४ श्लोकमय पद्यबद्ध प्रतिलेखन पुष्पिका इस प्रति में भी है. इस प्रति की स्वयं की प्रतिलेखन पुष्पिका नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १-१५४३५-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: देव अविग्धं लिहतस्स, शतक-४१. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (१)सर्वज्ञमीश्वरमनंत, (२)तत्र नम इति नैपातिक; अंति: श्चेति न व्याख्याताः, ग्रं. १८६१६. २१६३२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ५४३१-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)पुव्वरिसी एव भासंति, (२)त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानजिनं नत्वा, (२)पूर्वसंयोग ते मातादि; अंति: (१)एह वचन भाष्यकारनउं, (२)ते जंबू प्रते कहे छइ, (वि. कर्ता का नाम नहीं लिखा गया है.) २१६३३. (+) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूल-नियुक्ति-भाष्य तीनों की संयुक्त शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८-१(७७)=११७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १०x४०-४५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २१६३४. (+) दसवीकालकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२६४११, ४४३०-३३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: तीर्थंकरनु प्ररुप्यु. २१६३५. पार्श्वनाथ चरित, पूर्ण, वि. १६३१, भाद्रपद कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १६८-८(१,७,४० से ४२,१३१ से १३३)=१६०, ले.स्थल. नारदपुरी, राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. ग. सुखनिधान; मु. कमलतिलक; मु. चिचापसिंह; मु. श्रीपाल (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ); लिख. श्राव. पहिराज शाह, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२७४११, १४-१५४४२-४५). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: (-); अंति: शुभभावलक्ष्मीम्, सर्ग-८, ग्रं. ६३००. २१६३८. (+) भुवनदीपक जोतिषशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. बाधणवाडा, प्रले. मु. खुसवंतसागर; राज्ये आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ७४२९-३५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१९१. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी जे; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरि, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक-१८४ से १८८ तक टबार्थ नहीं लिखा है.) For Private And Personal use only
SR No.018029
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2008
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
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