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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा के ५३वें वर्ष प्रवेश के प्रसंग पर चतुर्थ व पंचम खंड का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष खुशी की बात है कि संस्था द्वारा अपनाए गए श्रेष्ठता की ओर निरंतर सुधार व विकास के अभिगम से प्रेरित होकर खण्ड ३ के प्रकाशन के बाद सूचीगत सूचनाओं को उपयोगिता की दृष्टि से और भी ज्यादा सटीक व तर्कसंगत ढंग से प्राप्त व प्रस्तुत किया जा सके, इस हेतु से बड़े ही श्रम, समय व धन के व्यय पूर्वक सूचीकरण का कम्प्यूटर प्रोग्राम नए सिरे से बनाया गया है. अतः प्रस्तुत खंडों से सूचनाएँ ज्यादा स्पष्टतापूर्वक व योग्य स्थान पर मिलेगी. यथा पेटाकृति व कृति माहिती के स्तर पर भी प्रतिलेखक द्वारा तत्-तत् स्तर पर प्रदत्त प्रतिलेखन पुष्पिका का लेखन वर्ष, स्थल आदि सूचनाएँ मिलेंगी. कृति का अध्याय, गाथा आदि परिमाण जिस तरह का प्रतों में उपलब्ध होगा, उसी तरह से यहाँ दिया गया है. ध्यातव्य है कि कई बार एक ही कृति हेतु भिन्न-भिन्न प्रतों में परिमाण माहिती थोडी-बहुत न्यूनाधिक भी मिलती है. इसी तरह कृति परिवार वाले परिशिष्ट में भी अकारादिक्रम की ज्यादा उपयोगी पद्धति अपनाई गई है. इस तरह के छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन देखने को मिलेंगे. 2 आशा है यह नई प्रस्तुति विशेष उपयोगी सिद्ध होगी. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियों भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं. ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ ११ पर मुद्रित है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान / व्यक्ति व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ पृष्ठ ६ एवं प्रयुक्त जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रंथालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वयं में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को विविध भंडारों की हस्तलिखित प्रतों, प्रकाशनों व सामयिकों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे किसी भी कृति से सम्बन्धित सभी हस्तप्रतों, सभी मुद्रित प्रकाशनों एवं सामयिकों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक एवं मूर्ति भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्ध कर एकीकृत किया गया है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजयभाई सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के श्री दिलावरसिंह प्रह्लादजी विहोल आदि सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. ४ For Private And Personal Use Only संपादक मंडल
SR No.018028
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages611
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size7 MB
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