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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir में उपलब्ध प्रत का प्रथम व क्वचित द्वितीय आदि वाक्य, ८.(अंति:) प्रत में उपलब्ध प्रत का प्रथम व क्वचित द्वितीय अंतिम वाक्य. ९. कृति परिमाण : प्रत में उपलब्ध कृति का यथायोग्य अध्याय-ढाल-खंड आदि, गाथा/श्लोक आदि तथा ग्रंथाग्र की सूचना यहाँ दी गई है. कई बार विविध प्रतों के परिमाण में अनेक कारणों से न्यूनाधिकता मिलती है, जो कि प्रचलित कृति परिमाण से भिन्न भी हुआ करती है. यदि यह भेद ज्यादा बडा हो तो विभिन्न परिमाणों वाली एकाधिक कृतियों की स्वतंत्र प्रविष्टि का नियम है. यथा - बृहत् व लघु ऋषिमंडल स्तोत्र. १०. कृति पूर्णता : प्रतगत कृति की निजी पूर्णता को यहाँ दिया गया है. प्रत व पेटांक की पूर्णता (जिनका आधार मात्र पृष्ठों की उपलब्धि/अनुपलब्धि पर होता है) से कृति की यह पूर्णता भिन्न हो सकती है. यथा - एक पेटाकृति के तहत मूल व टबार्थ दो कृतियाँ हों, प्रतिलेखक ने मूल संपूर्ण लिखा हो एवं टबार्थ बीच में से लिखते लिखते अधूरा ही छोड दिया हो तो ऐसे में पेटाकृति माहिती स्तर पर पूर्णता 'संपूर्ण' आएगी, जबकि कृति स्तर पर मूल की पूर्णता 'संपूर्ण' एवं टबार्थ की पूर्णता 'प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण' इस तरह की जाएगी. क्वचित् प्रत/पेटाकृति स्तर पर पूर्णता में 'संपूर्ण न हो तो भी कृति स्तर पर यह 'संपूर्ण' हो सकती है. यथा - अंत के ही एक दो पृष्ठ न हो, ऐसी प्रत में मूल संपूर्ण हो सकता है एवं टीका का अंत भाग न होने की वजह से टीका 'संपूर्ण नहीं होगी. इस तरह कृति स्तर पर भी पूर्णता की अपनी स्वतंत्र उपयोगिता है. - इसके बाद कृति गत प्रतिलेखन पुष्पिका की निम्नोक्त सूचनाएँ ( ) ब्रेकेट में दी गई है. कृपया यहाँ दिए गए वर्ष व स्थल आदि को कृति की रचना प्रशस्ति मानने की भूल न करें. रचना प्रशस्ति से इनकी भिन्नता बताने के लिए ही इन्हें ब्रेकेट में दिया गया है. इसके अंदर प्रत/पेटांक नाम के अनुरूप संयोजित कृति की प्रत में उपलब्ध पाठ का स्पष्टीकरण किया जाता है. इसमें कृति यदि स्वशाखायुक्त होती है तो दर्शाये गये प्रत/पेटांक के पत्र अनुसार सभी अपूर्ण भी हो सकते हैं तथा कृति शाखा में से मात्र कोई एक ही अपूर्ण हो सकती है. जैसे - कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका. मूल - संपूर्ण तथा टीका - अपूर्ण. स्पष्टता - यहाँ भी अपूर्णता के सभी प्रकार आ सकते हैं. किन्तु संयोजित कृति के लिये जो लागू पडता हो उसी का चयन अपेक्षित रहता है. जैसे - अंत के पत्र नहीं है, श्लोक ४० तक टीका है अथवा अंतिम ५ श्लोकों की टीका नहीं है. ११. कृति प्रतिलेखन संवत, १२. कृति पूर्णता विशेष (पू.वि.), १३. कृति प्रतिलेखन स्थल (ले.स्थल.), १४. कृति प्रतिलेखक आदि, १५. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १६. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक (प्र.पु.श्लो.), १७. कृति प्रतिलेखन विशेष (वि.) - कृति स्तरगत प्रतिलेखन संबंधी इतनी सूचनाएँ प्रत स्तर की ही तरह तत्-तत् कृति हेतु अलग से उपलब्ध होने पर यहाँ पर दी गई हैं. कई बार ऐसा पाया गया है कि मूल व टबार्थ दोनों की प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न होती है. खास कर ऐसे संयोगों में ही यहाँ पर ये सूचनाएँ मिलेंगी. कृति नाम के अंत में star *" हो तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोक संग्रह हेतु हुआ है. आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) कर के दो दो आदि/अंतिम वाक्य मिलेंगे. यह विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि/अंतिमवाक्यों की वजह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथा संभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ, बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचूरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषाबद्ध पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदि: कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है, वह पृष्ठ न हो तो यहाँ पर आदि वाक्य की जगह (-) दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है. किसी कारण से अक्षर पढे नहीं जा रहे तो ऐसे में (अपठनीय) दिया गया है. कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है. यथा - उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर लिया गया है. कृति व विद्वान के एकाधिक अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं. For Private And Personal Use Only
SR No.018027
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages611
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size7 MB
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