SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम संख्या रघुवंश.. &RYA १५७-१५८ me - सर्व ग्रंथों का अकारादिक्रम - परिशिष्ट भडार ग्रंथांक | - पत्र भंडार ग्रंथनुं नाम | कर्ता संवत् । ग्रंथांक कर्ता | संख्या नाम प्रधनुं नाम | संवत् | लों.का ३४६ रगांगातैली दृष्टांतकथा+महावीर डूं.का. ८१० ० रघुवंशमहाकाव्य ........... हर्षविमल-ले.. स्तवन + दंडक स्तवन कालिदास कवि-क. इं.का. १३३ रघुवंश कालिदास रघुवंशशकुनावली. त.का. ५६५ कालिदास रघुपंजिका ..... वल्लभ देव त.का. ६७३ रघुवंश.. कालिदास रघुपंजिका .. वल्ल भ देव रतनगुरु सज्झाय ...... रघुवंश बेटक क.कालिदास रतनपालरास ................ मोहनविजय ..... जि.ता.३३४ रघुवंश महाकाव्य ............... महाकवि कालिदास .........१५०० रतनपालरास त्रूटक.... रघुवंश महाकाव्य ................ कालिदास कवि ........ रतनरासी १७६९ रघुवंश सस्तबक अपूर्ण ........ महाराज रतनजी वचनिका रघुवंश सस्तबक ........... .१२ | जि.का. २०९९ रत्नकोश त.का. १०५३ रघुवंशटीका ..................... चारित्रवर्धन.. १५६ जि.ता.२१८ • रत्नचूटकथा विषमपदविवरण ... ....१४०० जि.का ९२९ रघुवंशमहाकाव्य ................ कालिदास.. १२-१८ टिप्पनक जि.का १९४५ रघुवंशमहाकाव्य ......... कालिदास. त.का. ४१२ रत्नधूनचौपाई हिरकलश ............. .१६६० | .का. ८८३ रघुवंशमहाकाव्य .... सुखकीर्तिमुनि-पं........ रत्नघूउमुनिचोपाई कनकनिधान .ले.१८११ रघुवंशमहाकाव्य - सर्ग नवथी .. कालिदास... र.१७२४ बार अपूर्ण रत्नचूजरास कमलप्रभसूरि .......... --....१५७१ का १७७३ रघुवंशमहाकाव्य अपूर्ण........... कालिदास ......... रत्नचूडरास जि.का. १९४१ महाकाव्य अपर्ण............ कालिदास रत्नचूडाचौपई. १५८७ ० रघुवंशमहाकाव्य सटीक त्रिपाठ कालिदास-मू.क................... रत्नदीपज्योतिष..... गणपति टी.क.धर्ममेरु रत्नपालचौपाई १६८४ जि.का ८३४ रघुवंशमहाकाव्यअवचूरि...... ... १७ रत्नपालमुनियोपाई १८९९ ३७०० रघुवंशमहाकाव्यटीका ........... गुणरत्नगणि ............. १.१८६५ ..... १२४ रत्नपालमुनिचोपाई रत्नपालमुनि................ १९१२ रत्नपालरास ................ मोहनविजय ..........----- जि.का १७८५ रघुवंशमहाकाव्यटीका ........... मल्लिनाथ.. ..............१७१८ रत्नपालकथा ....... जि.का ३७० • रघुवंशमहाकाव्यवृत्ति ............ चारित्रवर्धन. रत्नपालरास ...... मोहनविजय..... रघुवंशवृत्ति अपूर्ण ... जि.का ११३३ रत्नप्रदीप गणपति रघुवंशपंजिका ........ आनंददेव बल्लभ ... त.का. १०६९ रत्नमाला... ..८६ जि.का १७ .....................ले.१६८3 बELANGANA १८२४ 33-४३ AN/300 त.का. ५१९ Jain Education International For Private &Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy