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________________ र.१८३६ ......२ १०१ ४३२ - सर्व ग्रंथों का अकारादिक्रम • परिशिष्ट १ भंडार ग्रंथांक - ग्रंथर्नु नाम कर्ता संवत् । पत्र | भंडार ग्रंथांक | ग्रंथन नाम कर्ता - संवत । पत्र नाम संख्या जि.का ९३१ बुद्धिरास.. ............... शालिभद्रसूरि ..... जि.का ९८ बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्य ....... भद्रबाहुस्वामी -मू.नि..........१९८४ |........ लों.का ४१८ बूडाचारित्र.. वृत्तिसह पीठिका ........... संघदासगणि क्षमाश्रमण .ले.१८८३ भा.क..वृ.क. मलयगिरि जि.का ११५६ बृहज्जातक ....१६३४ .........||जि.का ९९ ०बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्य ...... भद्रबाहुस्वामी -मू.नि...... र.१३३२ ......१९१ जि.का २१९७/१ ०बृहत्तक्षेत्रसमास विवरण सह .... जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण टी.... वृत्तिसह प्रथमखंड ..............- संघदासगणि क्षमाश्रमणले.१९८४ .............वि.क.मलयगिरि (पीठिका से आगे)............. भा.क., वृ.क. क्षेमकीर्ति जि.का १६२५/७ ०बहतूशांति........................ यादिवेताल शांतिसूरि ........... बृहत्कल्पसूत्रमूल ............. लों.का ५५८ बृहत् जातक................... वराहमिहिर ............. १-८ जि.का ३४ वृहत्कल्पसूत्रनियुक्ति-लघुभाष्य-भद्रबाहुस्वामि-मू. तथा नि..... १४८८१२२(२१४७ लों.का २०४ बृहत् शांति. वृत्तिसह तृतीयखंड .............. | संघदासगणि क्षमाश्रमणत.का. ३३९ |३३९ बृहत् शान्ति.. लघु.भा..वृ.आ.क्षेमकीर्ति ०बृहत् संग्रहणी सहवृत्ति ......... मलयगिरि जि.का ३३ ०बृहत्कल्पसूत्रनियुक्ति-लघुभाष्य- .. भद्रबाहुश्वामि -नि............१३३२१२८(२०१६ था.का ३०८ बृहत् स्नात्र विधि ................बादिहर्षनंदनगणि ........... वृत्तिसह द्वितीयखंड .......... संघदासगणि क्षमाश्रमण -२१४६) त.का. बृहत्कल्पचूर्णि लघु.भा.क...आ.शेमकीर्ति बृहत्कल्पभाष्य जि.का ३२ बृहत्कल्पसूत्रनियुक्ति-लघुभाष्य-- भद्रबाहुस्वामि -नि......... २.१३३२१७१(१८४५ बृहत्कल्पवृत्ति |वृत्तिसह प्रथमखंड ............... संघदासगणि क्षमाश्रमण.ले.१४८८/-.-२०१५) बृहत्कल्पवृत्ति द्वितीय खंड .... लघु.भा..वृ.मलयगिरि आ. बृहत्कल्पवृत्ति प्रथम खंड .... था.का २७४ ०बृहत्कल्पसूत्र भाष्य .. .......१६७२|..... २७१ बृहत्कल्पसूत्र .... ............. भद्रबाहुस्वामी... था.का.२३६ बृहत्कल्पसूत्र सह लघुभाध्य ... .........१६७६ ..... १९९ जि.का २७२ बहत्कल्पसूत्र. भद्रबाहुस्यामी ........ जि.का २१६४ बृहत्क्षेत्रसमास सस्तबक..... जि.का २९४ ० बृहत्कल्पसूत्र. भद्रबाहुस्वामी.. जि.ता.१५०/२ ०बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण ........... जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ....१३००/-.५८-१२१ लो.का ६० बृहत्कल्पसूत्र........... भद्रबाहुस्वामी .... |जि.ता.१९२ बहरोत्रसमासप्रकरण सटीक ...मू.क.जिनभद्रगणि ...........१४८९ |......३४२ १०१ ० बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति ............ भद्रबाहुस्वामी -मू.नि.....र.१३३२. २८४ समाश्रमण, वृ.क.मलयविरि भाष्यवृत्तिसह तृतीय खंड ......संघदासगणि क्षमाश्रमणले.१९८४ आचार्य भा.क., वृ.क. क्षेमकीर्ति | जि.ता. १९४ ०बृहत्यक्षेत्रसमासप्रकरण ....... मू.क.जिनभद्रगणि ......२६७ जि.का १००० वृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्य- ...... भद्रबाहुस्वामी -मू.नि...... र.१३३२ ....३०५ सटीक अपूर्ण................ क्षमाश्रमण, टी.क. वृत्तिसह द्वितीयखंड .............. संघदासगणि क्षमाश्रमण .ले.१९८३ मलयगिरि आचार्य भा.क., वृ.क. क्षेमकीर्ति त.का./१० ......... Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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