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________________ भंडार पत्र संख्या संवत् पत्र संख्या ................१६५२ ....१५६२ ............... .......१९ ४२० . सर्व ग्रंथोंका अकारादिक्रम - परिशिष्ट १ भंडार ग्रंथांक | ग्रंथर्नु नाम कर्ता संवत् ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम कर्ता नाम इं.का. ८00 पासाकेवली..................... गर्ग ऋषी त.का. १२७० .पिंडविशुद्धि ... जि.का ५५१ पाक्षिकक्षामणासूत्र लों.का. २५६ पिंडविशुद्धि अवचूरि . जि.का १००६ पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि .............१९०८ लों.का. १४६ पिंडविशुद्धि मूल ...... पाक्षिकसूत्र... ..१७०६ था.का. १९६ पिंडविशुद्धि सह अवचूरि जि.ता. १४४० ० पाक्षिकसूत्रचूर्णी ............. ........१४०० त.का. १२७४ पिंडविशुद्धि सह टब्बार्थ ... ....१६५४ ०पिंडनियुक्ति ........... भद्रबाहुस्वामी ................१३००/१३२-१७५ डूं.का. ६३८ पिंडविशुद्धि सह दीपिका ........ देवचंद्र .......................१५०३ आ.का, ३५५ पिंडनियुक्ति पिडनि आ.का १० पिंडविशुद्धि सह दीपिका ..... जि.ता.९०/१ ० पिंडनियुक्ति (महल्लिया ......... भद्रबाहुस्वामी ..१-३० त.का. ६५० पिंडविशुद्धि सह वृत्ति ......... .............................३३ पिंडनियुक्ति) लो.का १४५ पिंडविशुद्धि सह बालावबोध ..... १-२९ जि.ता, १४७/७ ०पिंडनियुक्ति कतिचिद्गाथावृत्ति आ.का.२०१ पिंडविशुद्धिदीपिका ........ जि.ता. ९०/२ ० पिंडनियुक्ति लघुवृत्ति . जि.ता.१५४/४ ०पिंडविशुद्धिप्रकरण ............. | जिनवल्लभगणि .............१२१०/... ३५-४५ जि.ता,९३/१ ० पिंडनियुक्ति लघुवृत्ति जि.का १३३/५ पिंडविशुद्धिप्रकरण ........... जिनवल्लभगणि ...... .....१-१२ जि.ता, १४७/८ ०पिंडनियुक्ति विषमगाथाविवरण , जि.का १८०/१ ० पिंडविशुद्धिप्रकरण ........... जिनवल्लभगणि जि.ता.९१ . पिंडनियुक्ति वृत्तिसह ............ नि.क, भद्रबाहुरवामी, .......१२८९ /......२०० जि.का ६५१ पिंडविशुद्धिप्रकरण ......... जिनवल्लभगणि ..... वृ.क. मलयगिरि जि.का १०६५ पिंडविशुद्धिप्रकरण ......... जिनवल्लभगणि का ४७ ०पिंडनियुक्ति वृत्तिसह ............ भद्रबाहुस्वामि -नि. ... १४८९ /.७४(७१८-||जि.का १३१०/४ पिंडविशुद्धिप्रकरण ......... | जिनवल्लभगणि ........ मलयगिरि आचार्य वृ... .... ७९०)||जि.का १३२६/२ ० पिंडविशुद्धिप्रकरण ......... जिनवल्लभगणि ........ ૪રધ્રુવ जि.का २२८ ० पिंडनियुक्तिअवचूरि ..... जयकीर्तिसूरि पूर्णिमापक्षीय ...... ४७||जि.ता. २०५ ० पिंडविशुद्धिप्रकरण सटीक ....... मू.क.जिनवल्लभगणि, ... र.११७६ जि.ता.९०/३ . पिंडनियुक्तिबृहबृत्ति सह वृ.मलयगिरि आचार्य ........१४८९ ... १-२४१ ............... टी.क.यशोदेवसूरि ........ले.१४०० जि.ता.९२ पिंडनियुक्तिवृत्ति वीरसूरि ....... ................१४०० ......२४७||जि.ता.२१० ०पिंडविशुद्धिप्रकरण सटीक ........क.जिनवल्लभगणि.... र.११७६ | ५ ० पिंडनियुक्तिसूत्रवृत्ति अपूर्ण...... भद्रबाहुस्वामि, टी.क.यशोदेवसूरि .............. .............................ले.१४०० मलयगिरि-वृ. जि.का ८६५ ०पिंडविशुद्धिप्रकरण सस्तबक .... जिनवल्लबगणि..............१५९६ जि.ता. १४७/६ ० पिंडनियुक्ति विषमपदपर्याय ... पिंडविशुद्धिप्रकरणअवचूरि .... था.का,१२१ पिंडविशुद्धि जिनवल्लभगणि किंचिदपूर्ण त.का. १५७ पिंडविशुद्धि पिंडविशुद्धिवृत्ति त.का. १६१ पिंडविशुद्धि • पिण्डनियुक्तिसूत्रवृत्ति त.का. ११४५ पिंडविशुद्धि पिण्डविशुद्धिवृत्ति .. त.का. १२७५ पिंडविशुद्धि ... त.का. ९६६ |पीस्तालीस आगमस्तवन .... १.३ ......... Por .. १६१ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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