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________________ संख्या संख्या ......................४४ ..३२ इं.का. ................१९२७ सर्व ग्रंथोंका अकारादिक्रम - परिशिष्ट १ - ३५३ भडारा ग्रंथांक ग्रंथनुं नाम कर्ता संवत् ग्रंथांक ग्रंथनुं नाम कर्ता संवत् नाम जि.का १४५१ ओघनियुक्ति .................... भद्रबाहुस्वामी ................... डूं.का. ४५६ औपदेशिक कथा .. था.का २७७ . ओघनियुक्ति औपदेशिक कथायें। जि.ता.१२६ ० ओघनियुक्ति वृत्तिसह. वृ.क. द्रोणाचार्य ............१३०० ....१३००/......२३३ आ.का १६१ औपदेशिककथाओ जि.का १४५३ ० ओघनियुक्ति सटीक, द्रोणाचार्य-टी.. १२५ था.का. २८० औपपातिकवृत्ति भद्रबाहुस्वामी-मू. | लोंका १८० औपपातिकवृत्ति त्रूटक ० ओघनियुक्ति सह वृत्ति .... द्रोणाचार्य .....१६६५ २०९| जि.का ९४५ औपपातिकसूत्र ० ओघनियुक्ति सह वृत्ति .... --....१६५१ ....२६ .का. ७८३ औपपातिकसूत्र... त.का. १५५ ओपनियुक्ति सह वृत्ति भद्रबाहु ............. ... २३| था.का १७३ ० औपपातिकसूत्र .... ० ओघनियुक्तिअवचूरि ... औपपातिकसूत्र ... ० ओघनियुक्तिबृहद्भाष्य.... १४९१ औपपातिकसूत्र .............. त.का. १४ ० ओघनियुक्तिभाष्य. औपपातिकसूत्र सस्तबक .......... जि.ता.८४/4 • ओधनियुक्तिवृत्ति ........... १११७ औपपातिकसूत्र सह टिप्पणक ... जि.ता.१२३/२ ० ओघनियुक्तिवृत्ति .. ....१४८७,......१६४||त.का.६४८ • औपपातिकसूत्रवृत्ति .............. अभयदे ० ओघनियुक्तिवृत्ति .......... द्रोणाचार्य ....................१२८९ ....१२८९ ......२४१ जि.ता. २४/१ औपपातिकोपांगसूत्र जि.ता. १२५ ०ओघनियुक्तिवृत्ति .... ....१३००.......२३४ जि.का १९ औपपातिकोपांगसूत्र जि.का ४२ ओघनियुक्तिवृत्ति द्रोणाचार्य ..................१४८८५-७३(४८७ | ३५३ ०औपपातिकोपांगसूत्र ....... . ५५९) जि.का १२३५ ० औपपातिकोपांगसूत्र .का १७२ ० ओघनियुक्तिवृत्ति द्रोणाचार्य ...............१६२९ ...... ९८ जि.का १३८६ औपपातिकोपांगसूत्र सटीक .... अभयदेवसूरि-टी. .का १४५२ ० ओघनियुक्तिवृत्ति द्रोणाचार्य-वृ.......... ..... ६९|| त्रिपाठ अपूर्ण त.का. ११३१ ० ओघनियुक्तिवृत्ति .....३-६६ जि.का २० ० औपपातिकोपांगसूत्रवृत्ति ........ अभयदेवसूरि .................१४८९ ३१(११५५जि.का ४१० ओघनियुक्तिभाष्य.. -३०(४५७ .. ४८६) जि.का ३५४ ०औपपातिकोपांगसूत्रवृत्ति ..... अभयदेवसूरि .................१६१ था.का ८३ ०ओधनियुक्तिभाष्य...... • ६८ जि.ता. २४/२ ०औपपातिकोपांगसूत्रवृत्ति ..... अभयदेवाचार्य .......... था.का.८४ ओघनियुक्तिवृत्ति ............ १५५ त.का. 0 औपपातिकसूत्र .... जि.ता.१४७/५ ० ओघनियुक्ति विषमपदपर्याय ६४-६६ औपपातिकसूत्र मूल ....... सुधर्मास्वामी जि.ता. ४००/४ ओम्कारपंचाशिका अपूर्ण ... लों.का ४९ औपपातिकसूत्र मूल ....... सुधर्मास्वामी जि.का ११८६ ओम्कारबावनी अपूर्ण .... ७८२ ० औपपात्तिकवृत्ति धर्मसुंदर .. जि.का ८४१ औक्तिक .......... १२१ औपपातिकवृत्ति ... जि.ता. १२४ ११८५) लों का ४८ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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