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________________ परिशिष्ट १.३२७ भंडार ग्रंथांक । नामा ग्रंथांक संख्या • अंगविद्या FEEEEEEEE परिशिष्ट १ : जैसलमेर के सर्व ग्रंथभंडारों के ताडपत्रीय तथा कागज के ग्रंथों का अकारादिक्रम कर्ता | संवत् पत्र ग्रंथर्नु नाम भंडार ग्रंथनुं नाम संख्या नामा ग्रंथांक | संवत कर्ता डूं.का. २५९ अंगधूलिका. ............... विनयरंग...... १५ जि.ता.२०/२ -अंतकृदशांगसूत्र. १९.३७ जि.ता,४१४ अंगविज्जा प्रथमखंड जि.का १७/२ -अंतकृदशांगसूत्र.. सुधर्मास्वामी एकत्रीस अध्यायपर्यंत १४०० का ८२/३ 0 अंतकृदशांगसूत्र.. सुधर्मास्वामी .......... था.का.६४ महिमासुंदर गणि ........ .१६६९ ..३३२ जि.का ०३४ अंतकृदशांगसूत्र जि.ता. १४९ अंगविद्याप्रकीर्णक... .१४८८ ९४२ अंतकृदशांगसूत्र...... जि.का ११०० अंगविद्याप्रकीर्णक .. .१९८४ CG जि.का १३८० -अंतकृदशांगसूत्र त.का. २१४ अंगुलसप्ततिका+जीवाकारविचार चंद्रमुनि जि.का ४७० अंतकृदशांगसूत्र वृत्तिसह त्रिपाठ सुधर्मास्वामी -मू.क., डूं.का. ३४० अंजनासुंदरी चौपई ........... जीवणजी पं.ले. ..१७९४ वृ.क.अभयदेवसूरि .. इं.का. १०८२ अंजनासुंदरी चौपई. भुवनकीर्ति ..१७६६ २२६० अंतकृदशांगसूत्रवृत्ति ....... अभयदेवसूरि.. जि.का १२७८ अंजनासुंदरीकथानक ......... १७८-१८९ गुणसमृद्धि महत्तरा .......... १४०७ १९/३ - अंतकृशांगसूत्रवृत्ति ...... अभयदेवाचार्य. त.का. ७१८ अंजनासुंदरीचौपाई २३/२ - अंतकृदशांगसूत्रवृत्ति अभयदेवाचार्य जि.का १९८४ -अंतकृदशांगसूत्रवृत्ति अभयदेवाचार्य. अंजनासुंदरीपवनंजयकुमाररास . पुण्यसागर लों का ३७४ अंजनासुंदरीचौपई ............. जि.का १८/२ -अंतकृदशांगसूत्रवृत्ति अभयदेवसूरि ... पुण्य सागर ................. १६८२ लों का ३०९ आ.का ४५ अंजनासुंदरीचौपई त्रूटक ...... | अंतकृद्दशांगसूत्र .. डूं.का. ३०२ अंजनासुंदरी कथा हर्षकिर्तीगणि-ले. त.का. १२२ अंतगडदशांगवृत्ति ...... गाण-ले..............१६७४ अंतगडदशांगसूत्र .... जि.का १२७३ अंतःकरणप्रबोधवृत्ति १२१९ अंतगडवृत्ति ....... अंतकृत-अनुतरोपपातिक .... त.का.|११२९/० अंतरिक्षपार्श्वनाथस्तयन .........सुमति दशांगवृत्ति त.का.८६९ - अंतरीक्षपार्श्वनाथस्तवन .. इं.का. ६६८ २०६७ अंतर्दशाकोष्टक .... १११० अंतकृतदशांग सूत्र ....... जि.ता.२२/७ • अंतकृदशांगसूत्र... १११४ अंतकृतदशांगवृत्ति ........... ज्ञानहर्षमुनि 1.का.१८१ अंतकृदशांग वृत्ति ....... १११५ अंतकृतदशांगसूत्र सह वृत्ति ... १७ अंतकृदशांगसूत्र सह वृत्ति, आ.का. १७० अंतकृत्दशांगसूत्र...... त.का. ३५४ 0 अंतरीक्षपार्श्वनाथ छंद ...... भावविजय ... आ.का २५७ अंतकृत् + अनुत्तरौपावातिक + त.का. ३६५ अंबडकथा .... अमरसुंदर प्रश्नव्याकरण विपाकवृत्ति ........... डूं.का. ७२ . अंबडचरित्र ..... मुनिरत्नसूरि .. जि.ता.२१/२ अंतकृदशांगवृत्ति ................. अभयदेवाचार्य .. डूं.का.२७८ अंबडचरित्र.... १.. यह निशान वाले ग्रंथो की सी.डी. और फोटोस्टेट दोनों कीये है। यह निशान वाले ग्रंथोंकी सिर्फ फोटोस्टेट की गई है। यह निशानवाले ग्रंथोकी सिर्फ सी डी.की गई है। यह निशान वाले ग्रंथ ग्रंथ-भंडारमें विद्यमान नहीं है। १-१५ वल्लभ RERE FREE आ.का ठाकर-ले. Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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