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________________ भाषा विशेष नोंध झेरोक्षसी .डी. प्रधान .९५४ थी ९५६.३२८ ९५४ थी ९५६३२८ ९५४ थी ९५६ ---३२८ ....१८०५ ...१८५१ ९६०.... तपागच्छ कागळनो हस्तलिखित ग्रंथभंडार - श्री सुपार्श्वनाथ जैन मंदिर - जैसलमेर | ग्रंथांक ग्रंथन नाम कर्ता ९५४ ...... सप्तति शत जिननाम स्तोत्र............... विशालसुंदर ............. ९५५ ...... जयतिहुअणस्तोत्र + स्तंभनपार्श्वनाथस्तोत्र ... ९५६ ...... देवप्रभस्तोत्र अवधूरि की पीठिका ...... ९५७ ...... भगवती पद्म पुष्पांजलीस्तोत्र ......... सरस्वतीस्तोत्र छंद ........................ यशोविजय ... ९५९ . शांति + पाक्षिक खामणां .. जयतिहुअणस्तोत्र...... अभयदेवसूरि.... शनिस्तोत्र मंत्र जाप .... सकलार्हतादि ........ साधारणजिनस्तोत्र सह अवचूरि ........... दयाविजयगणि. अजितशांतिस्तवन ......... महावीरचरित्र .......... जिनवल्लभसूरि १६६ ..... ४५ आगमस्तवन ....... सीमंधरस्वामीस्तवन सकलचंद जिनस्तवनधीवीसी. ९६९ . स्तुतिस्तवनसंग्रह चतुर्विशतिस्तुति .... विमलसौभाग्य.. गोडीपार्श्वनाथस्तवन ....... ...... पार्श्वनाथछंद देशांतरी ............ छंदपत्र ......................... वृषांकस्त वन .................................... महावीरजिनकल्याणकस्तवन................ सामायिकना दोष + चउद नियमनी सज्झाय.. जीवाजीवविचार पार्च स्तवन .............. वृद्धिविजय दानशील-तप-भावनासंबाद शतक व स्तवन .... कुमतिखंडनस्तवन .............................. स्नात्रविधि .................. १७..... ९६८ . ....... १८६० .... १९०३ ....१६४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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