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________________ प्रस्तावना -7 उपरोक्त पंचके भंडारके बाद प्रस्तुत सूचिपत्रमें देगडगच्छीय ग्रंथभंडारके ग्रंथोंकी सूचि दी | जौहरीमलजी पारख लिखित प्रस्तावना का कुछ अंश गई है । उसके बाद कागजके ग्रंथांक १३३१ से २२५७ तक के ग्रंथ (१.११७ से १५८) बडाउपाश्रयके "अब मुनि श्री पुण्यविजयजी के सूचीपत्रमें वर्णित २६८३ ग्रंथ और हमारे सूचीपत्रमें के ग्रंथभंडारके है । ये ग्रंथ विक्रमके १५ वें शतक से १९ वे शतक तक लिखे गये हैं और ४४५२ ग्रंथ मिलकर (कुल ७१३५) पूरे जैसलमेर शहर के सभी जैन भण्डारोंको हम समेट लेते उसका मुख्य भाग जैन आगम, प्रकरण, रास तथा स्तोत्रादि ग्रंथोंका है । ऐसा होते हुए भी हैं । यति श्री वृद्धिचंद्रजी व उनके शिष्य यति श्री लक्ष्मीचंदजी का एक मंडार जैसलमेर में व्याकरण, काव्य, छंद, आयुर्वेद और ज्योतिषादि विषयोंकी अजैन ग्रंथोंकी प्रतियाँ भी इस भंडारमें था जिसका मुनि श्री पुण्यविजयजी के सूचीपत्र की प्रस्तावना के पृष्ठ ५ पर चार व पांच दो क्रमांकोंसे उल्लेख हुआ है पर वस्तुतः वह एक ही भंडार था ।। ४) लोंकागच्छका ज्ञान भंडार जिन पाँच भंडारोंका सूचीकरण हमारे द्वारा किया गया है उनमें श्री थाहरुशाहजी का ग्रंथभंडार इस भंडारमें ताडपत्र पर लिखी हुई चार प्रतियाँ है । कागजपर लिखे हुए ग्रंथ विपुल लगभग विक्रम संवत १६५० से १६७५ के बीच में उन्हीं के द्वारा स्थापित हुआ है। संघवी थाहरुशाहजी प्रमाणमें हैं । ताडपत्रीय चार प्रतियोंमें कुल नब ग्रंथ है और वे जैन आगम और उसकी व्याख्याके ओसवाल भंसाली गौत्र, खरतरगच्छीय, जैसलमेर राज्य के दीवान थे और उन्होंने शत्रुजय तीर्थ हैं । उसमें भगवतीसूत्र (क्र.४, पृ.४६) अनुमानसे विक्रमके १२ वें शतकमें लिखा हुआ है और का यात्रा संघ भी निकलवाया था । वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । इतने व्यस्त व उच्च शेष ग्रंथ वि.सं.१३०७ में लिखे हुए हैं । प्राचीन प्रत्यंतरकी दृष्टिसे ये ग्रंथ महत्त्वपूर्ण है। पदासीन होते हुवे भी इनके भंडार के कुछ ग्रंथ स्वयं इनके हाथ के लिखे हुए हैं । यद्यपि इस भंडार के ग्रंथ अति प्राचीन नहीं हैं तो भी सही पाठ की दृष्टि से ये महत्त्वपूर्ण हैं ।। ५) तपागच्छका ग्रंथभंडार और फिर जब स्वयं थाहरुशाहजी ने इस कार्यमें रस लिया है तो प्रतियोंमें भूल होने की इस भंडारमें ताडपत्री तथा कागजपर लिखे हुए ग्रंथ है | उसमें से ताडपत्रीय सभी याने । गुंजाइश कम है। सातों ग्रंथोंकी सूचि तथा कागज के ग्रंथोकी सूधि यहाँ दी गई है। इस भंडारके और अन्य चारों भंडारोंके बहुतसे ग्रंथ यहीं जैसलमेर के मुख्य भंडार की ६) थाहरूशाहका ग्रंथभंडार प्राचीन ताडपत्र पर सुंदर, स्पष्ट व शुद्ध लिखी हुई प्रतियों की ही नकलें है अता मुख्य भंडार में कोई ग्रंथ किसी कारण वश आज यदि उपलब्ध नहीं है तो उसकी जगह यदि इन भंडारोंमें विक्रमके १० वे शतकमें जैसलमेर निवासी भंसालीगोत्रीय धनी, दानी और धर्मनिष्ठ श्रेष्ठी श्री थाहरूशाहने जिनमंदिरनिर्माण आदि अनेक धर्मकृत्य किये थे जिसमें स्वयंका ग्रंथभंडारभी लिखवाया उस ग्रंथ की प्रतिलिपि हो तो वह अपेक्षाकृत माननीय होनी चाहिए । श्री तपागच्छ जैन ग्रंथ भंडार भी लगभग विक्रम संवत् १६५० से १६७५ के बीच ही था । ....... ...... ..... ..........." ___ "जिनभद्रसूरि ग्रंथभंडार में ताडपत्रीय और ताडपत्रीय आकारके कागज पर लिखे हुए ग्रंथोंके स्थापित हुआ लगता है क्योंकि किसी भी भंडार की स्थापना आगम-ग्रंथों से होती है और इस अतिरिक्त कागजपर लिखे ग्रंथोंकी कुल मिलाके २२५७ हस्तलिखित प्रतियाँ है ।" (अमृतलाल भंडार के आगम-ग्रंथोंका जोडा (सेट) उन्हीं लिपिकों द्वारा लिखित है जिन्होंने थाहरुशाहजी के भोजक का विवेचन समाप्त) लिये ग्रंथ लिखे हैं । कागज, नाप, स्याही आदि सब एक सरीखी ही है । किस आचार्य ईसवी सन् १९८८ में सेवामंदिर-राबटी-जोधपुर-राजस्थान की ओर से महा त्यागी एवं तपस्वी महाराज ने इसकी स्थापना की, यह तो पता नहीं है, परंतु जैसलमेर निवासी कोठारी, पारख स्व. जौहरीमलजी पारखने 'जैसलमेर (राजस्थान) हस्तलिखित ग्रंथोंका सूची-पत्र द्वितीय खंड आदि गोत्रीय जैन ओसवालों ने ये प्रारंभिक ग्रंथ लिखवाकर भंडार को भेंट किये हैं । यह इस नामसे एक सूचीपत्र प्रकाशित किया था । उसके प्राक्-कथन में उन्होंने ग्रंथभंडारोंकी तथा भंडार बाद में अधिक समृद्ध होता गया जब कि थाहरुशाह के भंडारमें स्थापना के वर्षोंके अन्य विस्तृत जानकारी दी है उसमेंसे कुछ अंश यहाँ अक्षरशः उद्धृत है । बाद नगण्य वृद्धि हुई है । इस भंडार की पुरानी सूचि पीछे परिशिष्ट में दी गई है । श्री ढुंगरजी यति का भंडार उनकी परंपरागत खरतरगच्छ की संपत्ति है और अभी तक 'इनके नाम से ही प्रसिद्ध था । स्वर्गीय श्री डुंगरजी यति अपने समय में किले के मुख्य भंडार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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