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________________ १२३ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथनु नाम स्थिति १४८४ ...... - उत्तराध्ययनसूत्र सावचूरि किंघिदपूर्ण .. जीर्ण .... संवत् रोक्ष सी.डी ग्रंथान । भाषा प्रा.सं. । पत्र संख्या - +..............२१८ विशेष नोध पाणीथी भींजायेली तथा उधेईए खाधेली छे. मा.सं -१८५० ... १४९२+१५०५...२८३.....६६७, मू.गा.२९ MER:08 ............... .................गा.४७ १४८५ उत्तराध्ययनसूत्र सस्तबक ............... मध्यम, प्रा.गू १४८६ दशवकालिकसूत्र सस्तबक अपूर्ण .....-मध्यम, प्रा.गू जीवविचार-नवतत्त्व-दंडकप्रकरण ....... मध्यम.. जीयविचारप्रकरण सावचूरिक त्रिपाठ -जीर्ण ....शांतिसूरि मू. .......... नवतत्त्वप्रकरण .................. मध्यम. नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक ........... श्रेष्ठ, .... प्रा.गू विचारपदिशिकाप्रश्नोत्तर ............. जीर्ण ....जिनाधिसूरि...... ......र.१७२४ जंबूदीपसंग्रहणीप्रकरण सटीक त्रिपाठ श्रेष्ठ.....हरिभद्रसूरि -मू..........प्रा.सं. .......र. १३९० टी.प्रभानंदसूरि नवतत्त्वप्रकरण जीर्ण. श्रीचंद्रीयासंग्रहणी मध्यम ... श्रीचंद्रसूरि मू. श्रीचंद्रीयासंग्रहणी सटीक त्रिपाठ ..... श्रेष्ठ ... श्रीचंद्रसूरि मू. श्रीचंद्रीयासंग्रहणी सस्तबक ........... जीर्ण .... श्रीचंद्रसूरि मू. श्रीचंद्रीयासंग्रहणी मध्यम ... श्रीचंद्रसूरि लघुक्षेत्रसमास ....................... श्रेष्ठ ..... रत्नशेखरसूरि ........ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण यंत्रसह ..................... रत्नशेखरसूरि ........ जंबूढीपक्षेत्रसमासप्रकरण ...............श्रेष्ठ ............ जंबुद्धीपक्षेत्रसमासप्रकरण सस्तबक .....मध्यम ..... कर्मविपाककर्मग्रंथ प्राचीन वृत्तिसह ..... श्रेष्ठ .....परमानंदसूरि ........ १५०३ ....... प्राचीन कर्मस्तव बंधस्वामित्वकर्मग्रंथवृत्ति जीर्ण .. १५०३/१.... कर्मस्तबवृत्ति ....... .............. जीर्ण. १५०३/२...... बंधस्वामित्वकर्मग्रंथवृत्ति .............. १५०४ ...... आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ ............ ......मध्यम ...जिनवल्लभगणि .......... प्रा.. १५०५ ...... आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण- ........ श्रेष्ठ.....जिनवल्लभगणि -मू.....प्रा.सं....... प्राचीनषडशीतिचतुर्थकर्मग्रंथ ..................... .टी.क.मलयगिरि 52 गा.२६४ गा.२६३ गा.१०९ गा.१५४ ....! किनारी उंदरे करडेला छे. ..गा.१२ .३९... १४९२+१५०५...२८८ Jain Education International For Private &Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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