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________________ भाषा संवत् .........र. १५२१ पत्र संख्या झेरोक्ष सी.जी. ग्रंथाना विशेष नोंध .............. १२मु ...८०८...८१७....... ...का.४ १६-२१/...८०८...८१७...... गा.४.९१ पत्र १३-१५ नथी ८१९ ........ १५६० गा.१५७ गुज. र.१६४६.ले.१६९५ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग | ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम । स्थिति ८१७/९ ...... चतुर्विशतिजिनस्तुति ........ श्रेष्ठ...... ८१७/१०.....महावीरस्तवन ...... श्रेष्ठ ..... लखमण.... श्रीपालचरित्रवालावबोध ............ मध्यम.. नंदवत्रीसीचोपाई ........................ श्रेष्ठ ..... शानशील ....... पुरंदरचोपाई............................. श्रेष्ठ ..... मालदेव ........... गौतमपृच्छाचउपई..................................नयरंग .... द्वादशभावनासंधि ....................... श्रेष्ठ .....जयसोम .............. नयतत्वविचार ........................... श्रेष्ठ ............................... कमलावतीचरित्रचोपाई .................मध्यम ... विजयभद्र .............. एकाक्षरीनाममाला .......................श्रेष्ठ.....अमरचंद्र .............. सुकोशलऋषिसज्झाय .................. श्रेष्ठ .... विद्याचारित्र ............ वाग्भटालंकार ............................जीर्णप्राया वाग्भट .............. चतुर्मुखश्रीधरणविहारश्रीआदिनाथस्तवन जीर्णप्राय मेघो ........... नमस्कारवालावबोध मध्यम आदिजिनस्तवन.. श्रेष्ठ .... विजयतिलक भोज्यनामगर्भित जिनस्तुति ........... साधुराजगणि उत्तराध्ययनसूत्रछत्रीसभास ..... श्रेष्ठ .... राजशीलोपाध्याय ... शांतिनाथस्तवन................. प्रेमविजय नंदीसूत्रगत द्वादशांगीआलापक ....... श्रेष्ठ..... देवबाचक रघुवंशमहाकाव्यअवचूरि............... श्रेष्ठ .... सीमंधरस्वामीरूपवर्णनस्तवन सस्तबक श्रेष्ठ .... आलोचनाविचार-योगविध्यन्तर्गत ..... मध्यम .. सम्यक्त्वकौमुदी .......... अतिजीर्ण शत्रुजयउद्धार .... श्रेष्ठ ..... नयसुंदर ............ देलवाडामंडनआदिजिनस्तवन सावरि पंचपाठ...... जीर्ण .... लक्ष्मीसागर -मू..... जिनपालजिनरक्षितस्वाध्याय.. मध्यम ... आनंदप्रमोद औक्तिक.. मध्यम.. ..६....८२६... ८३० ... ८२६... ८३०........... गा. गुज..र. १४९९-१५४७ +.. गा.२१, ..........का.१२ श्रेष्ठ .... |... ८२६... ८३० श्रेष्ठ .... MPPLY. १७०३ ........... १६३८ -८३७,८३९.८४१...२७२ ....१३०० गा.१२४ा 1.८३७,८३९,८४१..२७२ मू.कडी२२ गज. गा.E९ ८.८३७,८३९.८४१ Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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