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________________ भाषा संवत् । पत्र संख्या | झेरोक्षसी .डी. ग्रंथान विशेष नोंध ...............३९६ + ३९७ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक | ग्रंथनु नाम स्थिति | ३९६ ......... सप्तस्मरण संस्कृतस्तबकसहखरतरगच्छीय ...... जीर्ण ........ ३९७....... कथासंग्रह ............................. जीर्णप्रायः ३९८ ...पंचतंत्र. श्रेष्ठ.... ३९९/१ ..... शत्रुजयउद्धाररास...................... मध्यम ... समयसुंदरोपाध्याय .. ३९९/२ ..... गौतमरवामिरास ........................ मध्यम .... ३९९/३ ...... महावीरस्यामितपपारणास्तवन .........-मध्यम ..... ३९९/४ ..... शांतिनाथस्तवन. मध्यम ... गुणसागरसूरि. ३९९/५ ..... सोलसतीस्तवन .........................मध्यम ...... ३९९/६ ..... नवकारनी सज्झाय ................. मध्यम... गुणसागरसूरि ३९९/७ ..... अष्टापदस्तयन ..........................मध्यम ...समयसुंदर ........... ११-१७ .........२९८ .....र. १६८२ ..१-१० .... १४९२............. १७-२० २०-२२ ........... ર૪-૨૫ ............. २४-२५ .. २६मु .......... FFFF गा.९ ......... गा.५ प्रतिना पानां चोंटी जवाथी अक्षरो उखडी गया छे. ऋषिदत्ताचोपाई संगीतशास्त्र विषयक ग्रंथ छे. वेगडगच्छीय महिमसमुद्र ........... प्रारब्ध, बेगडगच्छीय मध्यम ...क्षमासुंदर ............... गुज. र.१६९८-ले.१७६६ ... श्रेष्ठ..... हृदयनारायणदेव ........ सं............. १७३८ .................... ४०१ थी मध्यम............. ............... २३-४६ .. ४०१ थी ४०५ श्रेष्ठ ..... रामचंद्राचार्य ..........१०३ .. ४०१ थी ४०५ जीर्णप्राय ... १६९९ ...............३-१७ .. ४०१ ..........२७.. ४०१ थी ४०५ ४०२.... हृदयप्रकाश............................ पंचतंत्र............... प्रक्रियाकौमुदी .......... सुभाषितश्लोकसंग्रह सूक्तावली ...... ४०३..... श्रेष्ठ ..... .........१०४६ प्रति पाणीमां भीजाईन खराब ..........थयेली छे. ...का.१४५ ४०८ ... श्रेष्ठ ..... सुभाषितसंग्रह. ......९ .. ४०६ थी ४०९ वाग्भटालंकार ६२-७२ -- ४०६ थी ४०९ सुभाषितसंग्रह .......८.. ४०६ थी ४०९ गुणावलीगुणकरंडकरास ............... श्रेष्ठ ..... उदयसूरि वेगडगच्छीय . .सं.... र. १७७३-१७७३ .. १२ .. ४०६ थी ४०९ ४१०/१..... सत्तरभेदीपूजा ..............." ........... जिनसमुद्रसूरि .......... गुज............. १७१८ ............ ४१०/२ ..... गुर्वावली.......... प्रा. ४१०/३ ..... पंचतीर्थीस्तुति .................... श्रेष्ठ ..... जिनसमुद्रसूरि ........... गुज... १०मु ....१० ...... १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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