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________________ कर्ता सवत पत्र संख्या २५४ .... २५५.. २५६..... २५७........ २५८........ भेष्ठ.... जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम स्थिति भाषा झेरोक्ष सी.डी. ग्रंथान विशेष नोंध २५२......... नलदवदंतीचरित्र पद्य ................ मध्यम..देवभद्र मुनि .......... १५३५ ........... .....२५१ + २५२...२६७/.....८५४ २५३'..... ..अनर्घराघबनाटक .............. श्रेष्ठ..... मुरारि कवि गु............ १३७५ ............. ....८६ ............२५३ - २६७/ गौतमपृच्छा वालावबोधसह अपूर्ण ..... श्रेष्ठ ... ....२५४ संबोधसप्तति बालावबोधसह ........ जीर्ण.. ....२५४ थी ६० सप्तस्मरण खरतरगच्छीय सावपूरक पंचपाठ जीर्ण ... ५२ ..... २५४ थी ६० पर्युषणाकल्पनियुक्तिवृत्ति किंचिदपूर्ण ... श्रेष्ठ ..... भद्रबाहुस्वामी -मू.. ....पा. ४६-६०.....२५४ जिनप्रभसूरि -वृ. श्रावकाराधना ..... .............२५४ थी २५९...... ....तत्त्वसारगाथा श्रेष्ठ..... .१७४५ .................५ ....२५४ J... गा.७४ २६०......... कल्याणमंदिरस्तोत्र सस्तबक ........ मध्यम ... ....२५४ थी ६०......... मू.का.४४ २६१/१ ......शत्रुजयकल्प ... श्रेष्ठ ..... जिनप्रभसूरि १७३२ .....२६१ थी ६६...२३९/..... १३५. आनुं अपरनाम धर्मोपदेशशत अने | ............ जिनोपदेशशत पण छे. २६१/२ ...... उपदेशशतक .......५-८.....२६१ थी ६६ ...२३९..... १०३ २६१/३ ...... सूक्तसंग्रह ............ श्रेष्ठ .... [.....२६१ थी६६...२३९.......९९ पत्र १० मुं नथी. २६२......... उपदेशमालाकर्णिकावृत्ति अपूर्ण ...... जीर्ण .... उदयप्रभसूरि ........... २६३ ........ श्राद्धविधि विधिकौमुदीवृत्तिसह श्रेष्ठ ..... रत्नशेखरसूरि स्वोपज्ञ ..... सं....र. १५०६-१५३२ .१२१ ....६७६१). पत्र ६८.७०,७१,७५,८८ थी ११५ नथी, २६४ ...... भगवतीसूत्रबीजक ..... श्रेष्ठ.... हर्षकुलगणि ....... ......१६११-१६१८ २६५..... प्रव्रज्याविधानकुलक................ ........... १७२३ ........गा.३४ संघपट्टक सस्तबक.. ...........१७३५ ............ प्रति चोंटीने नकामी थयेली छे २६७/१ इंद्रियपराजयशतक सस्तबक ....मू.गा.१०० २६७/२ भववैराग्यशतक सस्तबक .... ...मू.गा.१०४ २६७/३ .. आदिनाथदेशनोद्धार सस्तबक ..... म.गा.८८| २६८....... विवेकमंजरी प्रकरण आसड ..... प्रा. ........र. १२४८ .....गा. १४४ २६९ ....... संदेहविघौषधि-कल्पसूत्रवृत्ति श्रेष्ठ ..... | जिनप्रभसूरि प्रा.सं............ १३६४ ७०.२६८ ........२६९ जीतकल्पसूत्र श्रेष्ठ.... जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण . प्रा. ....२६७ थी ७०......... गा.१०७ श्रेष्ठ .... ..........८.93 .. १४ २६६ .. 8 बैं Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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