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________________ | ग्रंथांक । ग्रंथर्नु नाम१३८........ अनेकार्थकोश अनेकार्थकरवाकर- ..... ........... कौमुदीटीकायुक्त तृतीय खंड .... कइसिट्ठवृत्ति ... १४०.........कविकल्पलताविवेक ............. १४१.........कविकल्पलताविवेक द्वितीयखंड १४२........कविकल्पलताविवेक ... जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग स्थिति कर्ता भाषा | ___ संवत् । पत्र संख्या | झेरोक्ष सी.डी. ग्रंथान विशेष नोध । श्रेष्ठ .... हेमचंद्रसूरि -मू............सं. ........... १९८३ ................. ५२ .....१३८ + १३९ - २३६ श्रेष्ठ ..... महेंद्रसूरि -टी. श्रेष्ठ.....गोपाल पंडित ..... ३४.....१३८ + १३९ ...२३६ १९८४ श्रेष्ठ........... ................. १९८३ श्रेष्ठ .... बचमांनो केटलोक भाग .... आमां लखायेल नथी. १.२३६.....५१४ .. १४३ थी १४५ २३५२३६ .... का.२१ .. १४३ थी १४५..... "...का.३८ .. १४३ थी १४५.........का.५२ .. १४३ थी १४५....."...का.६९ .. १४३ थी १४५..... "...का.५३ .. १४३ थी १४५...."...का.२३ १४५...........२५४५ ४१... १४३ ३३ ...... १४६ + १४७...२३६ .......... अपरनाम-कविगुह्य काव्य श्रेष्ठ ..... .. १४३ लक्ष्मीधर ....... श्रेष्ठ..... १४५ .२३६ १४३ ........ अभिधावृत्तिमातृका श्रेष्ठ ..... मुकुल भट्ट १४४/१ ...... घटकपरकाव्य १४४/२ ...... मेघाभ्युदयकाव्य ...... १४४/३ ..... वृंदावनमहाकाव्य १४४/४ ...... मधुवर्णनकाव्य...... केलिकवि १४४/५ ...... विरहिणीप्रलापकाव्य श्रेष्ठ.... केलिकवि १४४/६ ...... चंद्रदूतकाव्य ................... १४४/७ ...... विक्रमांकमहाकाव्य ................. श्रेष्ठ..... | बिल्हणकवि ........ १४५........ चक्रपाणिविजयकाव्य ............... श्रेष्ठ ..... १४६ ......... कविरहस्य-अपशब्दाभासकाव्य सटीक हलायुध मू.. ........... रविधर्म -टी. १४७.......! न्यायकंदलीटिप्पनक श्रेष्ठ ..... नरचंद्रसूरि .. १४८........ न्यायभाष्यविवरण .................. १४९ ....... न्यायप्रवेशवृत्तिपंजिका ............ श्रेष्ठ..... पार्श्वदेवगणि .............. १५०........ द्रव्यालंकार स्वोपज्ञवृत्ति सह ........... -द्वितीयप्रकाश टिप्पणीसह ..... रामचंद्र गुणचंद्र ........... सं. १५१......... द्रव्यालंकार स्वोपझवृत्ति सह ............ तृतीय प्रकाश टिप्पणीसह ............ श्रेष्ठ.... रामचंद्र गुणचंद्र ...........सं. १५२......... प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञवृत्ति सह ........ श्रेष्ठ..... हेमचंद्रसूरि स्वोपज्ञ -आ.. सं. १५३/१ ...... प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञवृत्ति सह ......... श्रेष्ठ..... हेमचंद्र आचार्य.... |१५३/२..... परीक्षामुखप्रकरण .................... श्रेष्ठ..... ४७ ......१४६ + १४७.२३६ .....१४८ + १४९ १.२३६ J.....१४८ + १४९ ... २३६ १९८४ ........... .. १५० थी ३९ ... १५० थी ... १५३ थी ...........४१-४३... १५३ थी १५६ - २३७ .....१-४१ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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