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________________ ....१६ ९६/२.... ..............प्रा. ..... १९८२ ..................९६ ९५/३.... .. . .........१४७८४ १९८४ १९८४ ...४६०० जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम स्थिति भाषा संवत् पत्र संख्या मेरोक्ष सी.डी. ग्रंथान विशेष नोंध दशाश्रुतस्कंधसूत्रनियुक्ति... श्रेष्ठ .... भद्रबाहुस्वामी ............. ૧૬૨ .............. १-४ दशाश्रुतस्कंधसूत्रचूर्णी ............४-४१ दशाश्रुतस्कंधसूत्र ........ भद्रबाहुस्वामी .............प्रा.. १९८२ ४१-७४ ९७..... कल्पचूर्णी ....... ........२८५/......९७ (१.२) ९८........ बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह ...... श्रेष्ठ .... भद्रबाहुस्वामी -मू.नि....प्रा.सं............ ..............९८ .......... पीठिका .. संघदासगणि क्षमा श्रमण-भा, मलयगिरि-वृ । ९९ .........बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह ...... श्रेष्ठ .. भद्रबाहुस्वामी -मू.नि......प्रा.सं.र.१३३२-ले.१९८४ ................ १९१/...............९९ ........... १५४०० .............. प्रथमखंड (पीठिकार्ध थी आगळ)............. | संपदासगणि क्षमा अमण-भा, क्षेमकीर्ति-वृ. १००........ बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह ..... श्रेष्ठ .... भद्रबाहुस्वामी मू.नि....प्रा.सं.२.१३३२-ले.१९८३/................३०५ /.... १00 (१.२)........... १४१६ द्वितीयखंड संघदासगणि क्षमा श्रमण-भा. क्षेमकीर्ति-वृ. १०१......... बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति भाष्यवृत्तिसह ... श्रेष्ठ..... भद्रबाहुस्वामी मू.नि....प्रा.सं २.१३३२-ले.१९८४ ................२८४ |.... १०१ (१,२)........... १२६५१ .......... तृतीय खंड संघदासगणि क्षमा श्रमण-भा. क्षेमकीर्ति-वृ. १०२...... पंचकल्पचूर्णी ........................ ..............प्रा.-............ ............१०२.............३२३५ व्यवहारसूत्रघूर्णी .... १०३ (१.२). ..१२००० व्यवहारसूत्रवृत्ति द्वितीयखंड मलयगिरि आचार्य -वृ..प्रा.सं. .१९८४ .... १०४ (१,२)-.. ......१३७१९ निशीथसूत्र भद्रबाहुस्वामी .......... १०५ .....८१२ निशीथसूत्रभाष्य ............. ............ १०६ | निशीथसूत्रचूर्णी द्वितीयखंड श्रेष्ठ .... जिनदासगणि महत्तर ..... प्रा. ... १०७ निशीथसूत्रचूर्णी द्वितीयखंड ......... जिनदासगणि महत्तर .....प्रा.. ... १०८ (१.२) महानिशीथसूत्र.. .. १०९ ....४५४४ अंगविद्याप्रकीर्णक १९८४ ......... ....९००० जीतकल्पसूत्र वृत्तिसह श्रेष्ठ .... जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण प्रा.सं. ........... १९८३ .............१११ -भू. तिलकाचार्य -वृ. ११२/१ .....सिद्धमाभृतसूत्र ...... १.४..११२ थी ११४.........गा.१२१ श्रेष्ठ, प्रा. १९८३ श्रेष्ठ ..... श्रेष्ठ .... -- १९८३ ...... .......७४०० श्रेष्ठ..... .......प्रा. १९८३/ .मा. ... ११० १११... Jain Education International For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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