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________________ संपादकीय लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना प्रणेता आगमप्रभाकर (स्व.) मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजना भंडारनी हस्तप्रजोनी सूचि तैयार करवा माटे काम हाथ धरायु. जे मुजब संस्कृत अने प्राकृत अपभ्रंश कृतिनी हस्तप्रतोनुं सूचित्र श्री. अंबालालभाईए तैयार करी आप्यु; पण गुजराती हस्तप्रतोनी सूचिन कार्य बाकी हतु जे पूरे करवानो अवसर मने मळयो. आ सूचिपनी योजना भाषानियामक गुजरात राज्ये जे प्रमाणे मंजूर करी छे ते प्रमाणे में आ सूचि तैयार करी छे जेमां विषय, कर्ता, कृति, अनो रचनासंवत (र.स.), लेखनसंवत (ले.स), पत्रो, परिमाण, ग्रंथान के श्लोकसंख्या--ए रीते प्रथम तबक्को. कविपरिचय बीजो तबको अने विशेषनेांध त्रीजो तबक्को.-ए पद्धति अपनावाई. आमां कविपरिचय माटे एम बन्यु के मोटे भागे जैन साधुओनी कृति होवाधी, ओना जन्मसमय, स्थळ, गच्छ अने गुरुपरंपरा, रचनास्थळ वगेरे नेांधायु. एने माटे जैन गूर्जर कविओ, जैन साहित्यनो इतिहास वगेरे पुस्तको पर आधार राखेलो छे. क्यांक ए सिवाय लेखसंग्रहो, ला. द. विद्यामंदिरनी व्यक्तिसंदर्भसूचि जे श्री रूपेन्द्रभाईए तैयार करेल छ एनो पण उपयोग थयेलो छे. जैनेतर कविओ माटे गूजराती हस्तातोनी संयुक्त यादी. कविवरित वगेरे श्री के का. शास्त्रीरचित पुस्तको तो साथे राखेलां ज. परंतु विशेष माहिती विभागमा हस्तप्रतनी अंदरथी ज जे काई जाणवा जेवु लाग्यु ए लीधु. प्रशस्तिमांथी पण आवु मळे. कोईक अतिहासिक बनावनी नांध, काईक लहिया विशे, काईक कृति रचायाना प्रसंग विशे, एवं जे काई नेधिगत्र लाग्यु ए लीधु छे अने सूचिना आ बे विभागो काईक अंशे विरल के मौलिक लेखी शकाय. आम गुजराती भाषाने भाषानी दृष्टिए, साहित्यिक दृष्टिले अने अतिहासिक दृष्टिए मूलववी होय, भौगोलिक फलक उपर गोतवी होय तो आवी हस्तप्रतोनो अभ्यास एक जनिबार्य साधन छे, एम बताववानो आ सूचि द्वारा एक प्रयत्न थयेलो छे. तेम ज जे स्वरूपे आ सूचि तैयार थई छे, ए ज स्वरूपमा हस्तप्रतोतुं संपादन कार्य सरल थई शके एम छे एटले के एक कृति पसंद करी, सौपहेला एनो विषय, कर्ता अने एना हाईवें संशोधन करी, विशेष माहिती नांधवी. एम एक आखी संपादन पद्धतिनो नमूनो आपे छे. ___ रचनाकाळ अने लेखनकाळ वच्चे जो समयगाळो लंबाई गयो होय तो एनी एज हस्तप्रतमा भाषाकीय तफावत नजरे चडशे. रचनास्थळ अने लेखनस्थळमां स्थानांतरनो गाळो रहेतो हशे तो ए पण दृष्टिमां पडशे. एटले के, जो कृति मारवाडना तळप्रदेशमा रचाई होय अने लहियो के नकलकार गुजरातना तळप्रदेशनो होय अने त्यां एनी नकल थयेली होय तो आ प्रदेशभेदनी अनुभूति मेज हस्तपतमां क्यांक पण थशे ज. अने ए वखते सूचिमा आवतो कविपरिचय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018004
Book TitleCatalogue of Gujarati Manuscripts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages870
LanguageSanskrit, English
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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