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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष क्रमांक १०३५२ अने १०३५३ ना ग्रं. २२००० छे. १०३५३मां पत्र ३६-३७ भेगा छे. कुल झे. पृष्ठ- २१४ पाकाहेम १४७९१ पृ. ३२५ आवश्यकसूत्र बृहद्वृत्ति- शिष्यहिता वि-१४७३, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र - २२००० पत्र १६४मुं नथी. कुल झ. पृष्ठ-३१७ पाकाहेम १४८६६, पृ. ३२५, आवश्यकसूत्रबृहद्वृत्ति ( शिष्यहिता), वि-१६६७, संपूर्ण प्रत विशेष परिमाण श्लोक संख्या २२००० आपेल छे. आवश्यक सूत्रना (सं.) शिष्यहितावृत्तिनुं (सं.) प्रदेशव्याख्या टिप्पण (प्रदेशव्याख्या टिप्पणक) आचार्य हेमचन्द्रसूरि मलधारी, सं. गद्य ग्रं. ४६४०, आदि वाक्य जगत्त्रयमतिक्रम्य स्थिता यस्य पदत्रयी .... " " पातासंघवी १२३-१, पृ. १८९ आवश्यक टिप्पण, वि-१२५८, संपूर्ण प्रत विशेष - जीर्ण थई गई छे. डीवीडी-३४/५२ यताकांति ३९८ पृ. २१८ आवश्यकवृत्तिप्रदेश- व्याख्या, टीप्पणक, संपूर्ण डीवीडी-९७ / ९८ पाकाहेम ६५२७, पृ. ८०, आवश्यकसूत्रवृत्ति प्रदेशव्याख्या टिप्पनक, वि-१४९३, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- ८१ पाकाहेम ६५५७, पृ. ६६, आवश्यकसूत्र वृत्तिटिप्पनक, वि-१४८१, संपूर्ण प्रत विशेष - ग्रन्थाग्र-४४२०. कुल झे. पृष्ठ-६६ पाकाहेम १००६७, पृ. ६१ आवश्यकसूत्रवृत्तिप्रदेशव्याख्याटिप्पनक वि-१६मी, संपूर्ण कुल झ. पृष्ठ-६१ पाकाहेम १०३७०, पृ. ५५ आवश्यकसूत्रवृत्तिप्रदेशव्याख्या - टिप्पनक, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-५६ आवश्यक सूत्र-(सं.) लघुवृत्ति आचार्य-तिलकसूरि, सं., पद्य, रचना सं. विक्रम १२९६, श्लोक १२३२५, आदि वाक्यः (१) यो मन्दरागेण न मन्थितोऽपि न वा नरैः क्वाऽपि विलङ्घितोऽपि ...(२) देवः श्रीनाभिसूनुर्जनयतु स शिवं....... पातासंघवी २३- पे. क्र. १ पृ. १-१८१ आवश्यक लघुवृत्ति, वि-१४८६, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति सारी छे. डीवीडी - २३ / ४१ पातासंघवी २०६-२- पे.क्र. ५८ पृ. १७९-१८४, योगशास्त्र चार प्रकाश आदि संपूर्ण पे. नाम- चैत्यवन्दन वन्दनक विवरण वृत्ति डीवीडी-३८/५५ पाकाहेम ६५५६, पृ. २३९ आवश्यकसूत्र लघुवृत्तिसहित, वि-१५मी, संपूर्ण कुल झ. पृष्ठ- २४० पाकाहेम १०३४८, पृ. ९ चैत्यवन्दन प्रत्याख्यान श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति, वि-१५मी, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष ग्रन्थाग्र- ७५०. कुल झे. पृष्ठ-६ आवश्यक सूत्र - ( सं .) बृहद्वृत्तिनो (सं.) विषमपद पर्याय विभाग-२ सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र. १७, पृ. ३२-४६, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-८४ आवश्यक सूत्र- (सं.) वृत्ति आचार्य तिलकसुरि, सं. गद्य, "" पातासंघवी २३- पे.क्र. २. पृ. १८१-३६०, आवश्यक लघुवृत्ति, वि-१४८६. संपूर्ण 75
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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