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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती डीवीडी-३३/५२ सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धारप्रकरण जुओ - सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण, गणि-जिनवल्लभ, प्राकृत, गा.१६४ सूक्ष्मार्थसप्ततिका आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, रचना सं. विक्रम ११५५, गा.७५, आदि वाक्यः सिद्धो बुद्धो अणन्तो बंओभो सोमो सिवो गुरू... पाकाहेम १११५३- पे.क्र. २२, पृ. २९-३१, मुनिचन्द्रसूरि-चक्रेश्वरसूरि-रत्नसिंहसूरिकृत प्रकरणसङ्ग्रह, वि-१९७९, संपूर्ण पे. नाम- सूक्ष्मार्थसत्तरि कुल झे.पृष्ठ-३५ सूक्ष्मार्थसप्ततिका-(सं.)टिप्पण आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, गुरु-आचार्य-धर्मघोषसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः नत्वा जिनं समीचीनं वस्तुसद्भावभावकं... पाकाहेम १११५३- पे.क्र. २५, पृ. ३३-३६, मुनिचन्द्रसूरि-चक्रेश्वरसूरि-रत्नसिंहसूरिकृत प्रकरणसङ्ग्रह, वि-१९७९, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३५ सूक्ष्मार्थसप्ततिका-(सं.)टिप्पण आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, गुरु-आचार्य-धर्मघोषसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः नत्वा जिनं समीचीनं वस्तुसद्भावभावकं... पाकाहेम १११५३- पे.क्र. २५, पृ. ३३-३६, मुनिचन्द्रसूरि-चक्रेश्वरसूरि-रत्नसिंहसूरिकृत प्रकरणसङ्ग्रह, वि-१९७९, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३५ सूत्रकृताङ्गगत महावीरस्तवन जुओ - सूत्रकृताङ्गसूत्र-(प्रा.)हिस्सा महावीरस्तवन, आचार्य-सुधर्मास्वामी, प्राकृत सूत्रकृताङ्गसूत्र (सूयगडाङ्गसूत्र) आचार्य-सुधर्मास्वामी, प्रा., ग्रं.२२००, आदि वाक्यः (१) बुज्झिज्ज तिउट्टेज्जा बन्धणं परिजाणिया।...(२) बुज्झेज्ज तिउट्टिज्जा... पाताखेत ५३-१- पे.क्र. १, पृ. १-१४५, सूयगडाङ्गसूत्रनियुक्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- झेरोक्ष पत्रांक-२ त्रण वखत आपेल छे. डीवीडी-६२/६४ पातासंघवी ३१-३- पे.क्र.१, पृ. १-४८, सूत्रकृताङ्ग मूल, नियुक्ति, वि-१४६८, संपूर्ण डीवीडी-२५/४३ पातासंघवी १८६-२- पे.क्र. ४, पृ. ९७-११२, आचारनियुक्ति आदि, संपूर्ण डीवीडी-३७/५४ पाताहेसं ३- पे.क्र. १, पृ. १-४१, सूत्रकृताङ्गसूत्रवृत्ति, वि-१४५४, संपूर्ण प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-१/११ पाताहेसं ५१- पे.क्र. ५, पृ. ?, योगशास्त्रस्वोपज्ञविवरण आदि अनेक ग्रन्थोनां पानां, त्रुटक पे. नाम- सूत्रकृतांग-पुंडरीक अध्ययन, पे. विशेष- त्रुटक. झेरोक्ष पत्र-४१-४४. इन पत्रों के अलावे भी दूसरे पत्र होने संभव है. कुल झे.पृष्ठ-१०६, डीवीडी-६/१५ पाताहेसं १७१-१, पृ.?, सूत्रकृताङ्ग सूत्र, संपूर्ण प्रत विशेष- आ १७१ नंबरनी पोथी कागळनी छे. डीवीडी-९/१८ पाकाहेम ६८९५, पृ. ७४, सूत्रकृताङ्गसूत्र, वि-१७वी, संपूर्ण पाकाहेम ९९९०- पे.क्र. १, पृ. १-४४, सूत्रकृताङ्गसूत्र आदि, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पत्रमा आचार्य व्याख्यान आपे छे अने चतुर्विध संघ श्रवण करे छे ते भावने सूचवतुं सुन्दर चित्र छे. कुल झे.पृष्ठ-४९ 849
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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