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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पातासंघवी ६२-३, पृ. ३६०, द्व्याश्रय संस्कृत (महाकाव्य), वि-१३३५, संपूर्ण डीवीडी-३०/४९ भांता ६३, पृ. १९०, कुमारपालचरित, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.४-१२४ (१२२A)., सर्ग-२०, ग्रन्थाग्र-२८२८., पत्र-१८३+२+४+७=१९६. डीवीडी-७२/८१ पाकाहेम २३०८, पृ. ६७, व्याश्रयमहाकाव्य सम्पूर्ण, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिना कागळ बहु सरस छे.आनुं सम्पूर्ण नाम सिद्धहेमचन्द्राभिधानशब्दानुशासनद्वयाश्रयमहाकाव्य छे. कुल झे.पृष्ठ-४६ सिद्धहेमशब्दानुशासन-व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य-(सं.)वृत्ति (द्व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य-(सं.)वृत्ति ) गणि-अभयतिलक, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १३१२, ग्रं.१७५७४, आदि वाक्यः श्रीभूर्भुवः स्वस्तितयाहिताग्निगेहेभितो... पातासंघवीजीर्ण ९०- पे.क्र. २, पृ. ?, कल्पसूत्रादि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थों के छूटक पन्ने, संपूर्ण पे. नाम- व्याश्रयमहाकाव्य की अभयतिलकीय टीका, पे. विशेष- मात्र प्रारंभिक भाग है. झेरोक्ष पत्र-५५ पर है. प्रत विशेष- त्रुटक-अव्यवस्थित. कुल झे.पृष्ठ-१४४, डीवीडी-५८/६० पातासंघवी २८, पृ. २८४, व्याश्रय महाकाव्य सह वृत्ति- सर्ग १-११ खण्ड-१, वि-१४८५, प्रतिपूर्ण ___ कुल झे.पृष्ठ-२३६, डीवीडी-२४/४२ पातासंघवी ९५, पृ. २८४, व्याश्रयसंस्कृतवृत्ति सर्ग-८ सचित्र, संपूर्ण प्रत विशेष- हेमचन्द्राचार्य अने कुमारपालना चित्रो. डीवीडी-३२/५१ पातासंघवी २९-१, पृ. १९९, व्याश्रय महाकाव्य सह वृत्तिसर्ग १२ थी सम्पूर्ण- खण्ड-२, वि-१४८६, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८८५८. , सारी. डीवीडी-२४/४३ पातासंघवी ६४-१, पृ. ३६०, द्व्याश्रयसंस्कृतवृत्ति सर्ग ९ थी सम्पूर्ण, संपूर्ण डीवीडी-३०/४९ सिद्धहेमशब्दानुशासन-व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य-(सं.)दुर्गमार्थबोधिनी टीका सं., गद्य, प्रह्लादनपत्तन, पाताहेसं १५१- पे.क्र.२, पृ.?, उपदेशमालाकथासक्षेपविवरणादि त्रुटक खण्डित अपूर्ण नकामा पानानो सङ्ग्रह, संपूर्ण पे. विशेष- त्रुटक. मात्र प्रारंभिक भाग मिलता है. झेरोक्ष पत्र-२४ पर है. कुल झे.पृष्ठ-४२, डीवीडी-८/१७ सिद्धहेमशब्दानुशासन-व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य-(सं.)वृत्ति (द्व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य-(सं.)वृत्ति ) गणि-अभयतिलक, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १३१२, ग्रं.१७५७४, आदि वाक्यः श्रीभूर्भुवः स्वस्तितयाहिताग्निगेहेभितो... पातासंघवीजीर्ण ९०- पे.क्र. २, पृ. ?, कल्पसूत्रादि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थों के छूटक पन्ने, संपूर्ण पे. नाम- व्याश्रयमहाकाव्य की अभयतिलकीय टीका, पे. विशेष- मात्र प्रारंभिक भाग है. झेरोक्ष पत्र-५५ पर है. प्रत विशेष- त्रुटक-अव्यवस्थित. कुल झे.पृष्ठ-१४४, डीवीडी-५८/६० पातासंघवी २८, पृ. २८४, व्याश्रय महाकाव्य सह वृत्ति- सर्ग १-११ खण्ड-१, वि-१४८५, प्रतिपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२३६, डीवीडी-२४/४२ पातासंघवी ९५, पृ. २८४, व्याश्रयसंस्कृतवृत्ति सर्ग-८ सचित्र, संपूर्ण 830
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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