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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पे. नाम- शतकस्योद्धार प्रत विशेष- प्र.पु.श्लोक-यादृशं पुस्तकं. कुल झे.पृष्ठ-४२, डीवीडी-८७ शतक नव्य पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)वृत्ति (नव्य पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)वृत्ति) आचार्य-देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.४३४०, पातासंघवी ६१-१- पे.क्र. १, पृ. १-६५, कर्मग्रन्थ ५-६ सटीक, संपूर्ण पे. नाम- पञ्चम कर्मग्रन्थ नव्य सह स्वोपज्ञ (सं.)टीका प्रत विशेष- पत्र २४४-२८३ नथी, अंतमां छेल्ली गाथानी टीका अने प्रशस्ति नथी. डीवीडी-३०/४९ शतक नव्य पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)अवचूरि (नव्यशतकावचूरि) सं., पद्य, आदि वाक्यः नत्वा जिनं ध्रुवबन्धोदयसत्तासर्वदेशघाति... भांका १७४- पे.क्र. ५, पृ. २९-५४, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि-१ से ५ कर्मग्रन्थ, वि-१६२४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका. सर्वग्रन्थाग्र-३०००. कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-८६ शतक नव्य पञ्चम कर्मग्रन्थ-(सं.)अवचूरि सं., पद्य, आदि वाक्यः निजहेतु सद्भावे यासां प्रकृतीनां ध्रुवोवश्यम्भावी... भांका २०६- पे.क्र. ५, पृ. २८-४९, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि, वि-१५०७, संपूर्ण पे. नाम- शतकस्योद्धार प्रत विशेष- प्र.पु.श्लोक-यादृशं पुस्तकं. कुल झे.पृष्ठ-४२, डीवीडी-८७ शतक प्राचीन कर्मग्रन्थ बृहद्भाष्य जुओ - शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ-(प्रा.)बृहद्भाष्य, आचार्य-चक्रेश्वरसूरि, प्राकृत, ग्रं.१४१३ शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थ (प्राचीन पञ्चम शतक कर्मग्रन्थ), (कर्मग्रन्थ-५) आचार्य-शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, गा.१११, आदि वाक्यः अरहन्ते भगवन्ते अणुत्तरपरक्कमे पणमिऊणं।... कृ.विः गाथा ९० थी ११२ सुधी मळे छे. पाताखेत ११- पे.क्र. ४, पृ. ७०-८२, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि १३ ग्रन्थो, वि-१२७८, संपूर्ण प्रत विशेष- झेरोक्ष पत्र १,८,३१,७४,९० कुल पांच पाना घटे छे. कुल झे.पृष्ठ-११२, डीवीडी-६१/६३ पाताखेत ४२- पे.क्र.७, पृ. १, कर्मविपाकादि (प्राचीन) १७ ग्रन्थो, संपूर्ण पे. विशेष- गाथा-११२. प्रत विशेष- पेटाकृतिओना पृष्ठाङ्क उपलब्ध नथी. डीवीडी-६२/६४ पाताखेत ५०- पे.क्र.४, पृ. ४६-५३, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि १५ ग्रन्थो, वि-१२१३, संपूर्ण पे. नाम- सयपगरण, पे. विशेष- गाथा-१११. पत्रों का आधा भाग खंडित है. प्रत विशेष- झेरोक्ष पत्र ७०-१,७०-२, ७०-३ आ रीते बेवडाएल छे. कुल झे.पृष्ठ-९६, डीवीडी-६२/६४ पातासंघवीजीर्ण ४५-पे.क्र. ६, पृ. ७६-८४, सङ्ग्रहणी आदि, त्रुटक प्रत विशेष- त्रुटक-जीर्ण-नकामी. डीवीडी-५७/६० पातासंघवीजीर्ण ४६- पे.क्र.५, पृ. १४२A-१४८, सङ्ग्रहणी आदि, वि-१२८६, अपूर्ण पे. नाम- प्राचीन शतक कर्मग्रन्थ, पे. विशेष- अपूर्ण. गाथा-९८ तक है. पत्र १४७ व १४९ नहीं है. झेरोक्ष पत्र ३५-३८. बीच में दूसरी कृति भी है. 702
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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